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कृषि अधिकारियों ने खेत में रेज्ड बेड विधि से लगाए गए गेहूं के डीबीडब्ल्यू-377 फाउंडेशन बीज का निरीक्षण किया। इस अवसर पर अनुविभागीय कृषि अधिकारी डॉ. इंदिरा त्रिपाठी और वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी जेपी त्रिपाठी के साथ बड़ी संख्या में क्षेत्रीय किसान भी उपस्थित रहे। कृषक अर्जुन पटेल ने बताया कि डीबीडब्ल्यू-377 फाउंडेशन बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् करनाल से लाया गया है। इसे लगभग 30 किलोग्राम प्रति एकड़ की मात्रा में खेत में बोया गया है। कृषक द्वारा ब्रीडर बीज प्रमाणीकरण संस्था में पंजीकरण भी कराया गया है। इस बीज को फाउंडेशन सीड के रूप में किसानों को वितरित किया जाएगा।
कृषि विकास विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, नमी संरक्षण के लिए रेज्ड बेड विधि का उपयोग किया जाता है। इस विधि में बुवाई संरचना फैरो इरीगेटेड रेज्ड बेड प्लांटर से बनाई जाती है। इसमें प्रत्येक दो कतारों के बाद 25 से 30 सेमी चौड़ी और 15 से 20 सेमी गहरी नाली या कूड़ बनाई जाती है, जिससे फसल की कतारें उभरे हुए बेड पर आ जाती हैं। रबी के मौसम में यह नाली सिंचाई के काम आती है, जिससे नमी अधिक समय तक बनी रहती है। साथ ही, मेढ़ से मेढ़ की पर्याप्त दूरी होने के कारण पौधों की छत्रछाया (कैनोपी) को सूर्य की किरणें अधिक मात्रा में प्राप्त होती हैं, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।
पारंपरिक विधि की तुलना में रेज्ड बेड पद्धति के कई फायदे हैं:
किसानों के लिए नई उम्मीद: रेज्ड बेड पद्धति खेती के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी तकनीक साबित हो रही है। इससे न केवल उत्पादन में वृद्धि हो रही है, बल्कि पानी, बीज और अन्य संसाधनों की भी बचत हो रही है। यह पद्धति किसानों को कम लागत में बेहतर मुनाफा कमाने का अवसर प्रदान करती है।
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