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गन्ने की बात करें तो भारत इसके उत्पादन का प्रमुख देश है। देश के उत्तरी राज्यों में गन्ना अधिक उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती काफी अधिक होती है। यही कारण है कि यूपी सरकार भी गन्ना किसानों को समर्थन मूल्य देती है। हाल ही में सरकार ने इसमें बढ़ोतरी की है। लेकिन गन्ना किसानों को अच्छी उपज, पाने के लिए गन्ने की फसल को कई रोगों से बचाना पड़ता है। इसके बाद ही उन्हें अच्छी फसल प्राप्त होती है। आइए जानते हैं कि गन्ने की खेती के लिए किन तरीकों को अपनाना फायदेमंद होता है।
आमतौर पर गन्ने की फसल में पानी की जरूरत अधिक होती है। इसके साथ ही इसमें रोग होने की आशंका भी काफी ज्यादा होती है। गन्ने की फसल को रोगों से बचाने के लिए किसानों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। ऐसा ही एक रोग है रेड डॉट या लाल सड़न। ये गन्ने की फसल को ज्यादा प्रभावित करता है। इसे गन्ने के कैंसर के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस रोग को लगने के बाद फसल बर्बाद हो जाती है।
उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद ने किसानों की मदद के लिए इस रोग के लक्षण बताए हैं। दरअसल, लाल सड़न एक फफूँद जनित रोग है। इस रोग के लक्षण माह अप्रैल से जून तक पत्तियों के निचले भाग से ऊपर की तरफ मध्य सिरा पर लाल रंग के धब्बे मोतियों की माला जैसे प्रदर्शित होते हैं। माह जुलाई-अगस्त से ग्रसित गन्ने की अगोले की तीसरी से चौथी पत्ती एक किनारे अथवा दोनों किनारों से सूखना शुरू हो जाती है। इसके कारण धीरे-धीरे पूरा अगोला सूख जाता है। अगर गन्ने को लंबा कटा जाए तो अंदर का रंग लाल होने के साथ उस पर सफेद धब्बे भी दिखाई देते हैं। गन्ने के अंदरूनी भाग से सिरके अथवा अल्कोहल जैसी गन्ध आती है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार किसानों को लाल सड़न से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में 0238 किस्म की बुआई नहीं करनी चाहिए। इसके स्थान पर अन्य स्वीकृत गन्ना किस्म की रोग रहित नर्सरी तैयार कर बुआई का कार्य करें। बुआई करने से पहले कटे हुए गन्ने के टुकड़ों को 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम 50 WP या थायोफेनेट मेथिल 70 WP फफूंदनाशी के साथ रासायनिक शोधन अवश्य करें।
ये भी अपनाएं किसान: किसान मिट्टी का जैविक शोधन मुख्य तौर पर ट्राइकोडर्मा अथवा स्यूडोमोनॉस कल्चर से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 100-200 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद में 20-25 प्रतिशत नमी के साथ मिलाकर अवश्य करें। किसान पत्तियों के मध्य सिरा के नीचे रूद्राक्ष या मोती के माला जैसे धब्बे के आधार पर पहचान कर पौधो को जड़ सहित निकालकर नष्ट कर दें। उन्हें गड्ढे में 10 से 20 ग्राम ब्लिचिंग पाउडर डालकर ढक दें अथवा 0.2 प्रतिशत थायोफेनेट मेथिल के घोल की ड्रेचिंग करें। रोग दिखाई देने पर उपरोक्त प्रकिया माह जुलाई-अगस्त में भी अनवरत जारी रखें। साथ ही माह अप्रैल से जून तक 0.1 प्रतिशत थायोफेनेट मेथिल 70 WP या कार्बेन्डाजिम 50 WP का पर्णीय छिड़काव करें।