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निरंजनी अखाड़ा महादेव शिव को अपना आराध्य मानता है और उनके सिद्धांतों का पालन करता है। यहां के साधु और संत कठोर तप, योग, ध्यान और वेदों के अध्ययन में अपना जीवन बिताते हैं। इस अखाड़े की खासियत है इसका अनुशासन और वैदिक परंपराओं से जुड़ा रहना । भारतीय सनातन परंपरा में निरंजनी अखाड़ा का एक अलग ही महत्व है। इसकी स्थापना 904 ईस्वी में हुई थी और यह शैव परंपरा का पालन करने वाले सबसे पुराने अखाड़ों में से एक है। निरंजनी का अर्थ है "पवित्र," और यह अखाड़ा अपने नाम के अनुसार शुद्धता और साधना का प्रतीक है।
महाकुंभ के दौरान निरंजनी अखाड़ा की उपस्थिति श्रद्धालुओं के लिए खास आकर्षण का केंद्र होती है। अखाड़े की पेशवाई यानी उनकी शोभायात्रा महाकुंभ की शान बढ़ाती है। इस यात्रा में सजे-धजे रथ, हाथी, घोड़े और संतों का समूह श्रद्धालुओं को आध्यात्मिकता से जोड़ता है।
संगम के पवित्र तट पर निरंजनी अखाड़ा द्वारा विशेष यज्ञ, अनुष्ठान और प्रवचन आयोजित किए जाते हैं। यहां के संत और महंत धर्म, सत्य और योग पर आधारित अपने उपदेशों से लाखों श्रद्धालुओं को प्रेरित करते हैं। प्रति वर्ष संगम नगरी के माघ मेले में निरंजनी अखाड़ा जरुर सम्मिलित होता है।
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निरंजनी अखाड़ा न केवल धार्मिक परंपराओं का पालन करता है, बल्कि यह समाज को वैदिक ज्ञान और योग-ध्यान की शिक्षा देकर आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाता है। महाकुंभ जैसे आयोजन अखाड़े की इन परंपराओं को और अधिक प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने का मंच प्रदान करते हैं।
महाकुंभ 2025 और निरंजनी अखाड़ा: महाकुंभ 2025 में निरंजनी अखाड़ा का योगदान संगम तट को आध्यात्मिकता और वैदिक परंपराओं से समृद्ध करेगा। यह अखाड़ा अपनी पेशवाई, धर्मसभाओं और यज्ञों के माध्यम से श्रद्धालुओं को धर्म और आत्मज्ञान का संदेश देगा।
निरंजनी अखाड़ा न केवल सनातन धर्म की परंपराओं का पोषक है, बल्कि यह हमें संयम, वैराग्य और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है। महाकुंभ जैसे आयोजन इस सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को जीवंत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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