स्ट्रॉबेरी भारत के कई उत्पादक क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है और इसका व्यावसायिक उत्पादन संभावित रूप से लाभदायक है। जामुनों में स्ट्रॉबेरी एक महत्वपूर्ण छोटा फल है। स्ट्रॉबेरी फल विश्व स्तर पर व्यापक रूप से खाया और उगाया जाता है, और नई तकनीकों का उपयोग करके उगाने जा रहा है। लेकिन पोषक तत्वों, विटामिन और खनिजों से भरपूर होने के कारण मुख्य रूप से ठंडे समशीतोष्ण क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है। यह एक बारहमासी पौधा है जिसे फल देने के लिए परागण की आवश्यकता होती है। पुष्पन प्रकाश-अवधि और तापमान से प्रभावित होता है। यह फल कम लागत और अच्छे मूल्य का होने के साथ-साथ रोजगार का स्रोत भी है। स्ट्रॉबेरी दूसरे फलों की तुलना में जल्दी आमदनी देता है और इसका स्वाद हल्का खट्टा और मीठा होता है। इसके फल के लिये इसकी विश्वव्यापी खेती की जाती है। स्ट्रॉबेरी की विशेष गन्ध इसकी पहचान है। इसे संरक्षित कर जैम, रस, आइसक्रीम, मिल्क-शेक, कन्फेक्शनरी, चूइंगम, सॉफ्ट ड्रिंक आदि के रूप में भी इसका सेवन किया जाता है। इसमें मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं।
यह एक बारहमासी पौधा है जिसके फलों के लिए ठंडा किया जाना चाहिए।
कैमारोजा यह एक कैलीफोर्निया में विकसित की गई किस्म है व थोड़े दिन में फल देने वाली किस्म है। यह किस्म लंबे समय तक फल देती है व वायरस रोधक है।
यह फसल शीतोष्ण जलवायु वाली फसल है जिसके लिए 20 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है। तापमान बढ़ने पर पोधों में नुकसान होता है और उपज प्रभावित हो जाती है। विभिन्न प्रकार की भूमि में इसको लगाया जा सकता है। परंतु रेतीली-दोमट भूमि इसके लिए सर्वोत्ताम है। भूमि में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए। सितम्बर के प्रथम सप्ताह में खेत की 3 बार अच्छी जुताई कर ले फिर उसमे एक हेक्टेयर जमीन में 70-80 टन अच्छी सड़ी हुई खाद् अच्छे से बिखेर कर मिटटी में मिला दे। साथ में पोटाश और फास्फोरस भी मिट्टी परीक्षण के आधार पर खेत तैयार करते समय मिला दे। खेत में आवश्यक खाद् उर्वरक देने के बाद बेड बनाने के लिए बेड की चैड़ाई 2 फिट रखे और बेड से बेड की दूरी डेढ फिट रखे। बेड तैयार होने के बाद उस पर टपकसिंचाई की पाइपलाइन बिछा दे। पौधे लगाने के लिए प्लास्टिक मल्चिंग में 20 से 30 सेमी की दूरी पर छेद करे।
स्ट्राबेरी के पौधों की रोपाई 10 सितम्बर से 10 अक्तूबर तक की जानी चाहिए। रोपाई के समय अधिक तापमान होने पर पौधों को कुछ समय बाद अर्थात् 20 सितम्बर तक शुरू किया जा सकता है। पौधों की रोपाई दिन के ठंडे समय में की जानी चाहिए। स्ट्राबेरी के पौधे ऊपर उठी क्यारियों में लगाए जाते हैं। इन क्यारियों की चैड़ाई 2 फिट व ऊँचाई लगभग 25 से.मी. रखी जाती है। दो क्यारियों के बीच में डेड फिट का अन्तर रखा जाता है। क्यारियों में पौधों को चार पंक्तियों में बोऐ तथा पक्ति् से पंक्ति् के बीच में 25 सै.मी. की दूरी व पौधे से पौधे की आपसी दूरी 25-30 से.मी. रखना आवश्यक है। स्ट्राबेरी के 35000 से 45000 पौधे प्रति हेक्टयेर यानि की 10,000 वर्ग मीटर में लगने चाहिए। जड़ को पूरी तरह मिटी में सेट कर दें। जड़ बहार रहने से सूखने का खतरा होता है। पौध को ज्यादा तापमान और ठण्ड से इसके ऊपर छाया करनी चाहिए।
स्ट्राबेरी के खेत में खाद् और उर्वरक तथा सिंचाई: स्ट्रॉबेरी का पौधा काफी नाजुक होता है। इसलिए उसे समय समय खाद् और उर्वरक देना जरुरी होता है जो कि आपके खेत के मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट को देखकर देवें। साधारण रेतीली भूमि में 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से भूमि तैयारी के समय बिखेर कर मिट्टी में मिला देनी चाहिए। इस पौधे के लिए उत्तम गुणवत्ता (नमक रहित) का पानी होना चाहिए। पौधों को लगाने के तुरंत पश्चात् सिंचाई करना आवश्यक है। सिंचाई सूक्ष्म फव्वारों द्वारा की जानी चाहिए। यह सावधानी रखें कि सूक्ष्म फव्वारों से सिंचाई करते समय पौधा स्वस्थ एवं रोग-फफूंद रहित होना आवश्यक है। फूल आने पर सूक्ष्म फव्वारा सिंचाई को बदल कर टपका विधि द्वारा सिंचाई करें। पाली हाउस का उपयोग पाली हाउस नही होने की अवस्था में किसान भाई स्ट्रॉबेरी को पाले से बचाने के लिए प्लास्टिक लो टनल का उपयोग करे। पौधों को पाले से बचाने के लिए ऊपर उठी क्यारियों पर पॉलीथीन की पारदर्शी चद्दर जिसकी मोटाई 100-200 माइक्रोन हो, ढकना आवश्यक है। चद्दर को क्यारियों से ऊपर रखने के लिए बांस की डंडियां या लोहे की तार से बने हुप्स का उपयोग करना चाहिए।
स्ट्रॉबेरी की तोड़ाई और बाजार पहुंच: जब फल का रंग 70 प्रतिशत असली हो जाये तो तोड़ लेना चाहिए। फलों को प्लास्टिक की प्लेटों में पैक करें और उचित तापमान और हवादार जगह पर रखें। तोडाई के समय स्ट्रॉबेरी के फल को नहीं पकड़ना चाहिए, ऊपर से डण्डी पकड़ना चाहिए। औसत फल सात से दस टन प्रति हेक्टयेर निकलता है। स्ट्रॉबेरी की पैकिंग प्लास्टिक की प्लेटों में करनी चाहिए। इसको हवादार जगह पर रखना चाहिए,जहां तापमान पांच डिग्री हो। एक दिन के बाद तापमान जीरो डिग्री होना चाहिए।
स्ट्रॉबेरी के रोग तथा नियंत्रण: स्ट्राबेरी के पौधे विभिन्न रोगों के शिकार हो सकते हैं। इसकी पत्तियां खस्ता फफूंदी, पत्ता स्पॉट पत्ता ब्लाइट से संक्रमित हो सकती हैं। स्ट्रॉबेरी के पौधों में पानी देते समय यह ध्यान रखें कि पानी पत्तों को नहीं जड़ों को ही दें अन्यथा पत्तियों पर नमी कवक का विकास हो सकता है। रोग के नियंत्रण के लिये प्रारम्भिक अवस्था में मैन्कोजेब (75 डब्लू.पी.) 2.5 ग्राम प्रति लीटर या क्लोरोथायलोनिल (75 डब्लू.पी.) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 2-3 छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें।
स्ट्रॉबेरी की खेती का आर्थिक लाभ: स्ट्रॉबेरी की खेती उच्च मूल्य वाली और लागत-कुशल फसल है, जो किसानों को सुरक्षित और स्थाई आय प्रदान कर सकती है। स्ट्रॉबेरी में पोषक तत्व, विटामिन, और खनिजों की अधिक मात्रा होने के कारण इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। इसमें मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं जो हमारे शरीर के लिए आवश्यक हैं। स्थाणनीय या लोकल बाजार में स्ट्रॉबेरी का मूल्य 400-600 रुपए प्रति किलो तक मिल जाता हैं। स्ट्रॉबेरी की पैदावार प्रति हेक्टेयर 7 से 10 टन हो सकती है। यदि 4,00,000 रू. प्रति टन भी कीमत आंकी जावें तो फल बेचकर किसानों को प्रति हेक्टर 28,00,000 रू. का कूल अर्जन तथा लागत काट कर 5,00,000 रू. का शुद्ध लाभ प्राप्त होगा। स्ट्रॉबेरी की खेती एक लाभकारी और सुगंधित फल की उत्पन्नति का एक उत्कृष्ट तरीका है, जिससे किसानों को सशक्त बनाया जा सकता है। उच्च मूल्य और कम लागत के साथ, यह फल आर्थिक दृष्टिकोण से भी फायदेमंद साबित हो सकता है।