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संतरा एक बहुत ही स्वादिष्ट खटमिठ्ठा और रसदार फल होता है जिसका उत्पादन महाराष्ट्र में ज्यादा होता है। संतरे में विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा इसमें विटामिन ए और बी भी पाया जाता है। इसका इस्तेमाल गर्मियों में अधिकतर जूस निकालकर पीते हैं। यह शरीर की थकान तथा तनाव को दूर करता है। संतरे की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, हरियाणा,पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और उत्तरप्रदेश में की जाती है। इसकी अच्छी किस्मों का चुनाव करके अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। बाजारों में इसकी डिमांग काफी ज्यादा होती है। किसान संतरे की खेती करके अच्छी कमाई कर सकते हैं।
संतरे का पौधा लगाने के लिए जुलाई से सितंबर माह का समय उपयुक्त है। फरवरी से मार्च माह में भी इसकी खेती की जा सकती है।
संतरे की खेती के लिए 10 से 30 डिग्री सेल्सीयस तापमान उपयुक्त होता है। संतरे की खेती उष्ण-कटीबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में उगाई जाती है। इस फसल के लिये 100 से 150 मिलीमीटर पानी की आवष्यकता होती है। संतरे की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। संतरे की खेती के लिये रेतीली मिट्टी उपयुक्त होती है और जल भराव भूमि संतरे की खेती के लिये उपयुक्त नहीं होती है। संतरे की फसल के लिये आदर्श पी.एच. 6.5 से 8 के बीच उपयुक्त होती है।
कूर्ग - इस प्रजाति का पेड़ सीधा, चमकदार नारंगी फल, काम्पेक्ट पत्ते, छीलने में आसानी होती है। इस फल के 9 से 12 भाग तथा 15-20 बीज प्रचुर मात्रा में रस पाया जाता है। इस प्रजाति में फरवरी-मार्च में फल आते हैं।
भूमि की तैयारी: संतरे की खेती के लिए 1 से 2 बार ट्रैक्टर या हल से गहरी जुताई करें, जिससे मिट्टी मुलायम तथा भुरभुरी हो जाये। रोटावेटर का प्रयोग कर जमीन को समतल करके पौधों को खेत में 15 से 20 फ़ीट की दूरी पर पंक्तियों में गड्डो को तैयार कर लें। यह गड्डे आकार में एक मीटर चौड़े तथा गहरे होने चाहिए। इन गड्डो में गोबर की खाद मिलाकर मिट्टी को भर दे, और गहरी सिंचाई कर दें।
संतरे की खेती कैसे करें: संतरे के पौधे नर्सरी में पौध तैयार करके रोपित करते हैं। इसके लिये संतरे के बीज को पहले सूखा लिया जाता है फिर पालीथीन बैग में मिट्टी भरकर नर्सरी में रापित करते हैं। कमजोर पौधों को स्वस्थ पौधों से अलग कर देना चाहिए। इसके बाद पौधा 2-3 फीट लम्बा होने के बाद पौध रोपण करें। संतरे के पौधों को लगाने के लिये गढ्ढे का आकार 75 x 75 x 75 से.मी. तथा पौधे को 6 x 6 मीटर दूरी पर लगाना चाहिए। पौधों की बीच की दूरी 6 मीटर तथा दो कतारों की बीच की दूरी 6 मीटर होनी चाहिए। संतरे की फसल की बुवाई करने से पहले खरपतवार नियंत्रण के लिए पेराकाट का उपयोग 600 मिली प्रति एकड़ के अनुसार कर सकते हैं।
नर्सरी की तैयारी: खेत को अच्छी तरह से तैयार करें और पौधों को कतारों में लगायें। नर्सरी में कीट ग्रसित पत्तियों को छिड़काव पूर्व तोड़कर नष्ट करें।
संतरे की खेती में खाद एवं उर्वरक: इसमें एनपीके नाइट्रोजन, फास्फोरस , व पोटिशियम का प्रयोग करें। नाइट्रोजन उर्वरक की मात्रा को तीन बराबर भागों में जनवरी, जुलाई एवं नवम्बर माह में देना चाहिए। फसल के पहले वर्ष एस.एस.पी 315 ग्राम प्रति पेड़, म्यूरेट आफ पोटाश-45 ग्राम प्रति पेड़, यूरिया 325 ग्राम प्रति पेड़।
संतरे के पौधों की सिंचाई: संतरे की खेती में 900 से 1200 मिमी सिंचाई करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में सिंचाई 5 से 7 दिन तथा ठंड के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतर में करना चाहिए। सिंचाई का पानी पेड के तने को नहीं लगना चाहिए। संतरों के पौधों की सिंचाई डबल रिंग पद्धति से करना चाहिए। संतरे के पूर्ण विकसित पौधे को एक वर्ष में 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है।
संतरे की तुड़ाई: संतरे की फलों की तुड़ाई जनवरी से फरवरी के मध्य प्रारंभ हो जाती है। फल के पकने के बाद जब संतरा पूरी तरह से पीला हो जाये तब तुड़ाई प्रारंभ कर देना चाहिए क्योंकि फल को समय पूर्व नहीं तोडने पर फल खराब हो जाते हैं।
फल चिकित्सा और रोग निवारण: