रबी मौसम में खासकर दिसम्बर-जनवरी माह में फसलों पर पाला पडने की संभावना बनी रहती है, जिससे फसलों पर विपरीत प्रभाव पडता है। उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों में अभी पाले का असर देखा जा रहा है। पाले का प्रभाव सबसे अधिक सब्जियों की फसलों पर पडता है। साथ ही इससे सब्जियों की नर्सरी भी बेहद प्रभावित होती है। रबी की प्रमुख फसलों गेहूं व सरसों पर इसका काफी असर होता है।
पाले से बचाव के लिये कृषि वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर सलाह दी जाती है। किसानों को दवा और खादों के छिड़काव की जानकारी दी जाती है। जिस दिन पाला पडने की संभावना हो तब 350-400 मिलीलीटर सल्फर या गंधक को 450 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव करें। इसके अलावा नैनो यूरिया की 5-6 मिली लीटर प्रति लीटर पानी की दर से इसी सल्फर वाली घोल के साथ छिड़काव करने से फसलों पर पाले का प्रभाव नहीं होगा।
किसानों को चाहिए कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह से गिरनी चाहिए। इस छिड़काव का असर 15-20 दिन तक रहता है। यदि 15 दिन बाद भी पाले या शीतलहर का संभावना बनी रहती है तो सल्फर या गंधक का घोल दो-दो हफ्ते के अंतराल पर छिड़काव करें। यदि कोई किसान पछेती किस्म की गेहूं की प्रजाति लगाई है तो पहली सिंचाई के समय 20 ग्राम प्रति दर से सल्फर 90 प्रतिशत डब्ल्यूडीजी पाउडर को दानेदार यूरिया के साथ मिला दें। इसके अलावा जिंक 30 प्रतिशत पाउडर 5 ग्राम प्रति कट्ठा की दर से उसी यूरिया के साथ 1 एकड़ में सिंचाई के बाद छिडकें।
ड्रोन तकनीक से फसलों की सुरक्षा: जो किसान गेहूं या अन्य फसलों पर नैनो यूरिया, सल्फर या जिंक का ड्रोन से छिड़काव करते हैं तो उसके लिये पानी की मात्रा 10 लीटर तक रखें। फसलों को बचाने के लिये मेड़ों पर व बीच-बीच में हवा हो रोकने के लिये सपोर्ट का लगाएं।
रबी फसलों पर पाले और शीतलहर का असर: रबी फसलों को पाले व शीतलहर का काफी अधिक प्रभाव पडता है, जब तापमान 6-7 डिग्री सेल्सियस से कम होने लगता है व हवा का तापमान जल जमाव बिंदु से नीचे गिर जाए और दोपहर बाद हवा चलना बंद हो जाए उस दिन रात में पाला पडने की संभावना रहती है। खासकर रात को पाला पडने की संभावना अधिक रहती है।
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