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पपीता एक पोषक तत्वों तथा स्वाद से भरा फल है जिसमें विटामिन्स और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसमें उपस्थित बीटा कैरोटिन आंखो की सेहत के लिये फायदेमंद है। पपीता के फल का उपयोग मुरब्बा, जैम और शेक के रूप में किया जाता है। इसका फल घाव को भरने में भी सहायक है।
पपीता देश का लोकप्रिय फल है जो कम तापमान पर अधिक पैदावार देते हैं। भारत में पपीता मध्यप्रदेश आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, केरल और दक्षिण तथा पश्चिम राज्यों में प्रमुख रूप से उत्पादन किया जाता है। यह राज्य देश के कुल उत्पादन का तीन-चैथाई भाग उत्पादित करते हैं। पपीता का औषधीय महत्व के साथा व्यावसायिक महत्व भी है। पपीते का कुल वार्षिक विष्व उत्पादन 6 मिलियन टन अनुमान लगाया गया है। भारत 3 मिलियन टन पपीते का वार्षिक उत्पादन में विश्व में सबसे आगे है। प्रमुख पपीता उत्पादक देश ब्राजील, नाइजीरिया, मैक्सिको, इंडोनेशिया, पेरू, चीन, फिलीपींस और थाईलैंड हैं।
पपीते के पौधो को 8 फीट की दूरी या 7x7 फीट होना चाहिए। एक एकड़ में 900 पौधे लगाए जा सकते हैं। प्रति हेक्टेयर में 2500 पौधे तैयार होते हैं। पौधे को लगाने के लिये 2 फीट लम्बे, 2 फीट चैडे़ तथा 2 फीट गहरे गढ्ढे में तैयार किये जाते हैं। टैक्टर द्वारा 7-8 फीट की दूरी पर 1 फीट ऊँची मेढ़ बनाकर पौधे को रोपना चाहिए। पौध रोपण के समय गढ्ढों में 8-10 किग्रा. गोबर की खाद 0.5 किग्रा. नीम की खली हड्डी की खाद मिलाना चाहिए। पौधे को लगाने से पहले उसमें थोड़ी मात्रा में पानी से गीला कर देना चाहिए।
पपीता की रोपाई प्रमुख राज्यों में पूरे वर्ष की जाती है क्योंकि इसकी मांग बाजारों खासकर रमजान के महीने में ज्यादा रहती है। पपीते की खेती वसंत ऋतु में फरवरी-मार्च तथा जुलाई-सितम्बर में की जाती है। रोपाई ऐसे मौसम में करें जिसमें एफिड-वेक्टर की संख्या प्राकृतिक रूप से कम हो, जिससे किसी प्रकार का विषाणु या रोग न हो।
पपीते के लिये अच्छी गहराई व जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है। मिट्टी का पी.एच. मान 6.5 से 7 बीच होना चाहिए। ऊँचे और खुले स्थानों पर तेज हवा और तूफान से फल तथा पौधे टूट जाते हैं। इसलिये इसके पौधे को बगीचे और उचित स्थानों पर लगाना चाहिए।
पोषण की आवश्यकता: पपीते के पौधों के लिये उपजाऊ मिट्टी बहुत जरूरी है। मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिये गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए। इसमें पौधों में मिट्टी के जांच के आधार पर रासायनिक खाद का प्रयोग करना चाहिए। फल लगते समय बोरान तथा फल हल्का पीला होने पर पौधे पर पौटेशियम और कैल्शियम को डालना चाहिए।
जल प्रबंधन: पपीते के पौधे में पानी की आवश्यकता पूरे वर्ष पड़ती है। इसकी सिंचाई ड्रिप विधि से करनी चाहिए जिससे पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी मिल सके और उत्पादन भी अच्छी होती है। प्रति पौधे के लिये 8-9 लीटर पानी प्रति घंटे 2 ड्रिपर काफी होते हैं। मिट्टी में नमी की मात्रा और मौसम के अनुसार पानी देना चाहिए। बरसात के मौसम में पानी की जरूरत कम होती है और जल निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
पपीते की प्रजाति: डायोसियस रेड लेडी-786, सीओ- 2,3,6 सूर्या, पूसा डेलीशियस, हनीड्यू, पूसा नन्हा, अर्का प्रभात, वाशिंगटन, सोलो प्रजाति, आरसीटीपी-1 पपीता की प्रमुख प्रजातियाँ हैं।
पपीते का आर्थिक महत्व तथा उपयोग: पपीता में विटामिन ए तथा सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है जिसमें पोषक तत्व अधिक पाया जाता है। जिसका उपयोग पपाइन मांस को नरम बनाने चुइंगम त्वचा उत्पादों और रेशम के कपड़े बनाने में किया जाता है। पपीता पाचक के रूप में कब्ज की समस्या को दूर करने में सहायक है। इसमें फाइबर पाया जाता है जो डायबिटीज एवं हृदय संबंधी समस्या तथा कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करता है। हरे तथा कच्चे फलों को सब्जियों के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके पत्ते का रस डेंगू के ईलाज में बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।
पपीते के फायदे:
फलों की तुड़ाई कैसे करें: पपीते के पौधे लगाने के चार माह बाद जब फल पीले होने लगे तब फलों तुड़ाई करनी चाहिए। तुड़ाई प्रारंभ होने के चार माह तक फल पौधों से निकलते रहते हैं। फलों को तोड़ने के बाद एक सप्ताह तक ही रखा जाना चाहिए। तुड़ाई के बाद फलों को पेपर में लपेटकर टोकनी या कैरेट में रखकर बाजार में भेजना चाहिए।
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