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Papaya farming: मार्च-अप्रैल में करें पपीते की खेती: कम जोखिम में अधिक मुनाफे का सुनहरा मौका

पपीते की खेती
पपीते की खेती

किसान पारंपरिक फसलों की तुलना में पपीते की खेती की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि यह कम समय में अधिक मुनाफा देने वाली नकदी फसल है। मार्च-अप्रैल का महीना पपीते की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। सही तकनीक अपनाकर किसान प्रति हेक्टेयर करीब 2-3 लाख रुपये तक की आय कमा सकते हैं। जल निकासी, रोग प्रतिरोधी बीजों का चयन और उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग करने से उत्पादन और मुनाफा बढ़ाया जा सकता है।

पपीते की खेती क्यों है फायदेमंद?

  • कम समय में ज्यादा मुनाफा देने वाली नकदी फसल है।
  • पपीते की मांग औषधीय गुणों के कारण बाजार में हमेशा बनी रहती है ।
  • गेहूं-धान जैसी पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक लाभदायक होती है।
  • संपूर्ण वर्ष उत्पादन देने वाली फसल है।

मार्च-अप्रैल में इस तरह करें पपीते की खेती:

मार्च-अप्रैल के महीनों में बीमारियों और कीटों का खतरा कम होता है और अनुकूल जलवायु में पौधे तेजी से वृद्धि करते हैं। फसल की गुणवत्ता बेहतर रहती है, जिससे बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। उन्नत तकनीकों को अपनाकर उत्पादन और मुनाफा दोगुना किया जा सकता है। पपीते की सामान्य खेती के लिये पौधों की उचित दूरी रखें 1.8 x 1.8 मीटर और सघन खेती: 1.25 x 1.25 मीटर की दूरी रखें।

पपीते की खेती के लिए उन्नत किस्म:

  1. देशी किस्में – रांची, बारवानी, मधु बिंदु
  2. विदेशी किस्में – सोलो, सनराइज, सिन्टा, रेड लेडी

जल निकासी का सही प्रबंधन करें: जलभराव से पौधों को बचाने के लिए खेत में ड्रेनेज सिस्टम बनाएं।

पपीते की फसल को कीट एवं रोगों से कैसे बचाएं?

  1. सफेद मक्खी और एफिड से बचाव के लिए रोग प्रतिरोधी बीजों का चयन करें।
  2. नेट हाउस या पॉली हाउस में नर्सरी तैयार करें।
  3. इमिडाक्लोप्रीड (1 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव करें।
  4. फसल के चारों ओर ज्वार, बाजरा या मक्का लगाकर कीटों का प्रभाव कम करें।

अंतरफसली खेती से अतिरिक्त मुनाफा: पपीते के पौधों के बीच खाली जगह में प्याज, पालक, मेथी, मटर जैसी फसलें उगाएं, इससे अतिरिक्त आमदनी और भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ेगी।

पपीते की खेती में ध्यान रखने योग्य बातें:

  1. लगातार पपीते की खेती एक ही खेत में न करें।
  2. अत्यधिक पानी से बचाव करें।
  3. मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए जैविक खाद का उपयोग करें।
  4. समय-समय पर कीट एवं रोग नियंत्रण उपाय करें।
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