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परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): जैविक खेती को मिलेगा बढ़ावा

परंपरागत कृषि विकास योजना
परंपरागत कृषि विकास योजना

केंद्र सरकार परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। यह योजना प्रधानमंत्री-राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (PM-RKVY) का एक घटक है, जो किसानों को उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, प्रमाणन और विपणन तक पूर्ण समर्थन प्रदान करती है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य क्लस्टर-आधारित जैविक खेती को बढ़ावा देना और एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) विकसित करना है।

योजना के तहत मिलने वाला वित्तीय लाभ:

PKVY के अंतर्गत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए रु. 31,500 प्रति हेक्टेयर (3 वर्षों के लिए) की वित्तीय सहायता दी जाती है:

  1. रु. 15,000/हेक्टेयर किसानों को डीबीटी (DBT) के माध्यम से जैविक इनपुट्स के लिए सीधे दिए जाते हैं।
  2. रु. 4,500/हेक्टेयर विपणन, पैकेजिंग, ब्रांडिंग और मूल्य संवर्धन के लिए प्रदान किए जाते हैं।
  3. रु. 3,000/हेक्टेयर प्रमाणन और अवशेष विश्लेषण (Residue Analysis) के लिए दिए जाते हैं।
  4. रु. 9,000/हेक्टेयर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए प्रदान किए जाते हैं।

2015-16 से अब तक:

  1. 52,289 जैविक क्लस्टर विकसित किए गए।
  2. 14.99 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के तहत लाया गया।
  3. 25.30 लाख किसान इस योजना से जुड़े।

किसान उत्पादक संगठन (FPO) को समर्थन:

केंद्र सरकार की "10,000 FPOs के गठन और संवर्धन" योजना के तहत, अब तक 9,268 किसान उत्पादक संगठन (FPOs) पंजीकृत किए जा चुके हैं। किसान संगठनों को इनपुट्स की आपूर्ति, ऋण और विपणन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस योजना के तहत FPO प्रबंधन सहायता, इक्विटी अनुदान, क्रेडिट गारंटी फंड और सामुदायिक व्यापार संगठनों (CBBOs) के माध्यम से विपणन सहायता प्रदान की जाती है।

प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PMKMY): प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PMKMY) की शुरुआत 2019 में की गई थी। इस योजना के तहत 40 वर्ष की आयु तक किसान इस योजना में पंजीकरण करा सकते हैं। 60 वर्ष की आयु के बाद पात्र किसानों को रु. 3,000 मासिक पेंशन दी जाएगी। 25 नवंबर 2024 तक, 24.66 लाख किसान इस योजना में शामिल हो चुके हैं, लेकिन वे अभी पेंशन के पात्र नहीं हैं। सरकार की ये योजनाएं किसानों की आय बढ़ाने, जैविक खेती को बढ़ावा देने और कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल हैं।

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