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सर्दियों का मौसम शबाब पर है। तापमान दिनों दिन का हो रहा है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में तो पाला भी गिर रहा है। ऐसे में किसानों के सामने अपनी फसलों को बचाने की चुनौती है। ये मौसम मटर की पैदावार के लिए उपयुक्त है। लेकिन अब जब तापमान नीचे गिर रहा है तो मटर की फसल में कुछ रोगों के लगने की आशंका भी बढ़ गई है। ऐसे में किसान कुछ जरूरी कदम उठाकर अपनी मटर की फसल को इन रोगों से बचा सकते हैं। आइये जानें कि इसके लिए किसानों को क्या कदम उठाने होंगे।
कृषि के विशेषज्ञों के अनुसार, इन दिनों लगातार शीतलहर चल रही है और गलन के कारण मटर की फसल के लिए ये मौसम हानिकारक हो सकता है। तापमान कम होने से मटर की फसल की बढ़वार घट जाती है। ऐसे में किसान अपनी फसल की रखवाली खासतौर पर करें। गलन के कारण तापमान कम होने से फसल में मृदुरोमिल आसिता रोग का खतरा बढ़ जाता है। मृदुरोमिल आसिता रोग के लक्षणों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इससे पत्तियां किनारों की ओर से भूरी हो जाती हैं और सूखने लगती हैं।
मटर की फसल को मृदुरोमिल आसिता रोग से बचाने के लिए उसपर मैंकोजेब (डाइथेन एम-45 ) दवा का ढाई ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव किया जाना चाहिए। इन दोनों दवाओं का हर 10 से 15 दिनों के बीच में बारी-बारी से छिड़काव करने से लाभ होता है। वहीं फसल में नमी बनी रहे, इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिए।
एक और रोग फैलने का भी खतरा: जब तापमान कम होने लगता है तब मटर की फसल में रूट रॉट नामक रोग यानी आर्द्र गलन रोग के फैलने की आशंका भी काफी बढ़ जाती है अगर वातावरण में आर्द्रता अधिक हो तो यह रोग ज्यादा तेजी से फैलता है। यह रोग मटर की फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है। इस रोग से फसल को बचा लिया जाए तो फसल काफी ज्यादा होती है।
ये दवाएं देंगी फायदा: मटर की फसल में रोग दिखने पर जैविक कंट्रोल करें और ट्राइकोडर्मा की 10 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर इस्तेमाल करें इस दवा का प्रयोग मटर की जड़ों की सड़न को ठीक करने के लिए किया जाता है। अगर रोग तेजी से फैल रहा है तो रोको एम या कार्बेंडाजिम नामक कवकनाशक की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर मिट्टी का उपचार करने से रोग में कमी देखने को मिलती है।