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रेगिस्तान में खिली अनार और आलू की खेती, यह बताती है राजस्थान के किसानों की सफलता की कहानी, जानें विस्‍तार से khetivyapar पर

रेगिस्तान में खिली अनार और आलू की खेती
रेगिस्तान में खिली अनार और आलू की खेती

मरुस्थल में अनार और आलू की खेती, यह कल्पना कुछ साल पहले तक एक सपने जैसी लगती थी, लेकिन राजस्थान के किसानों ने इसे हकीकत बनाकर दिखाया है। राज्य के कई पश्चिमी रेगिस्तानी इलाकों में, जहां पहले सिर्फ टीले ही नज़र आते थे, वहां अब बड़े पैमाने पर अनार और आलू की खेती हो रही है। बाड़मेर जिला इसमें अग्रणी है। इस बदलाव में बाड़मेर जिला सबसे आगे रहा है। राजस्थान के किसानों ने मरुस्थल में अनार और आलू की खेती कर एक मिसाल कायम की है। यह दर्शाता है कि तकनीक, नए प्रयोग और कड़ी मेहनत से किसी भी परिस्थिति में सफलता हासिल की जा सकती है।

राज्य कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2022-23 में बाड़मेर में 5 हेक्टेयर में आलू की खेती हुई और 500 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ। वहीं, जालौर में 267 मीट्रिक टन, जोधपुर में 245 मीट्रिक टन और बीकानेर में 666 मीट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ। अनार की खेती भी यहां फल-फूल रही है। इसी तरह, 2022-23 में राज्य में 17,165 हेक्टेयर क्षेत्र में 156,844 मीट्रिक टन अनार का उत्पादन हुआ। 

बाड़मेर में सबसे अधिक उत्‍पादन: अनार का सबसे अधिक उत्पादन रेगिस्तानी जिलों में से बाड़मेर में होता है, जहां 8,466 हेक्टेयर क्षेत्र में 102,112 मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ। जालौर और जोधपुर अन्य जिले हैं, जहां इस फल की खेती बहुतायत में होती है। 

किसानों की सफलता:

2021 में बाड़मेर जिले के बुड़ीवाड़ा गांव के 15 किसानों ने 35 हेक्टेयर में अनार की खेती शुरू की थी। आज 4,000 से अधिक किसान इस फल की खेती कर रहे हैं। स्थानीय किसान लाला राम बताते हैं कि बाड़मेर के किसान सालाना लाखों रुपये के अनार बेच रहे हैं। उन्हें 5,800 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक का भाव मिलता है।

बाड़मेर का अनार विदेशों में भी लोकप्रिय है और इसे नेपाल, बांग्लादेश और दुबई सहित कई देशों में निर्यात किया जाता है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्थान के युवा और शिक्षित किसान पारंपरिक फसलों से हटकर प्रयोग कर रहे हैं। बाड़मेर के तारातरा गांव के विक्रम सिंह आलू उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हो गए हैं। इनका आलू विदेशों में फ्रेंच फ्राइज़ बनाने के लिए उपयोग होता है। पहले बाड़मेर में सिंचाई की कोई सुविधा नहीं थी, लेकिन अब सरकारी सब्सिडी के साथ खेतों में तालाब बनाए जा रहे हैं।
 

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