उत्तर प्रदेश आलू उत्पादन के मामले में देश में पहले स्थान पर है। देश की कुल आलू उपज का करीब 35 प्रतिशत अकेले यूपी में होता है। यहां प्रति हेक्टेयर औसत उपज करीब 23-25 टन है, जो देश की औसत से कहीं अधिक है। अब इस उपज को और बेहतर बनाने की पूरी तैयारी हो चुकी है।
आलू एक ऐसी सब्जी है जो लगभग हर रसोई और हर व्यंजन में उपयोग होती है। इसे उबालकर, तलकर, भूनकर या मैश कर खाया जा सकता है। यह स्नैक्स, चिप्स, पापड़, नमकीन जैसे खाद्य उत्पादों के साथ-साथ वोदका और इथेनॉल बनाने में भी उपयोगी है। सालभर उपलब्ध रहने और सस्ता होने के कारण इसे 'सब्जियों का राजा' भी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस ‘राजा’ की चमक बढ़ाने की पूरी योजना तैयार कर ली है।
राष्ट्रीय आलू अनुसंधान केंद्र हिमाचल प्रदेश के शिमला में स्थित है, जिसकी दो शाखाएं केवल मेरठ और पटना में हैं। ऐसे में आगरा और इसके आसपास के लाखों आलू उत्पादक किसानों को अनुसंधान का लाभ समय पर नहीं मिल पाता। अब पेरू स्थित इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर की शाखा आगरा में खोलने की प्रक्रिया जारी है। इससे किसानों को उन्नत बीज, नई तकनीक और प्रजातियों की बेहतर जानकारी मिल सकेगी।
कम समय में ज्यादा उपज देंगी ये उन्नत किस्में: कृषि विज्ञान केंद्र, गोरखपुर के वरिष्ठ सब्जी वैज्ञानिक डॉ. एस.पी. सिंह के अनुसार इन केंद्रों के माध्यम से किसान अधिक उपज देने वाली, कम समय में तैयार होने वाली और तापमान सहनशील प्रजातियों के बारे में जान सकेंगे। इससे बीज की स्थानीय उपलब्धता बढ़ेगी और बाजार की मांग के अनुसार प्रजातियों का चयन कर सकेंगे। कुछ खास प्रजातियां जैसे कुफरी नीलकंठ ,कुफरी शौर्या और कुफरी ख्याति आदि कुख्यात हैं।
पोषण के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है आलू: आलू में भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, पोटेशियम, मैग्नीशियम और फाइबर पाया जाता है। कार्बोहाइड्रेट ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, मैग्नीशियम हड्डियों और मांसपेशियों के लिए जरूरी है और फाइबर पाचन में सहायक है। इसके अलावा इसमें आयरन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, जिंक और मैंगनीज जैसे खनिज भी पाए जाते हैं, जो शरीर के लिए आवश्यक हैं।