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Poultry Farming in Hindi: आधुनिक तकनीक से सुसज्जित मुर्गीपालन ग्रामीणों की आत्मनिर्भरता में योगदान

Poultry Farming in Hindi: आधुनिक तकनीक से सुसज्जित मुर्गीपालन ग्रामीणों की आत्मनिर्भरता में योगदान
Poultry Farming in Hindi: आधुनिक तकनीक से सुसज्जित मुर्गीपालन ग्रामीणों की आत्मनिर्भरता में योगदान

मुर्गी पालन एक ऐसा अमूर्त प्रथा है जो सबसे आम है। सामान्य कृषि प्रथाओं के अलावा, मुर्गी पालन जैसी कुछ सहायक सेवाएं परिवारों को अतिरिक्त आय प्रदान करती हैं। अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों के लोग बैंक और वित्तीय संस्थानों तक पहुंचने में कठिनाई महसूस करते हैं, इसलिए वे इस तरह की गतिविधियों की ओर मुड़ते हैं क्योंकि इससे वे अपनी बचत को निवेश कर सकते हैं और अतिरिक्त धन कमा सकते हैं। यह उन्हें सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि जब उनकी आर्थिक आवश्यकताएँ होती हैं, तो उनके पास एक सुरक्षित बचत होती है। मुर्गी पालकों को काबू में करने वाली वैज्ञानिक पुल्ट्री फार्म यह तो है ही कि यह लागत-कुशल नहीं है और अधिकांश किसान इसे बहुत महंगा पाएंगे। 

मुर्गी पालन से ग्रामीणों को लाभ Villagers Benefit From Poultry Farming:

मुर्गी पालन से ग्रामीणों को अतिरिक्त आय की प्रदान करती है। साथ ही विदेशी मुर्गियों के विपरीत देशी मुर्गी एक अच्छी माँ होती है, जो अपने अंडों को सेती है एवं चूजों को अपने साथ लिये घूमती है तथा उनके लिए भोजन जुटाती है। मुर्गी पारिवारिक स्वास्थ और पोषण में महत्वपूर्ण भुमिका निभाती है। मनोंरजन, जैसे मुर्गा लड़ाई तथा मेहमानों की खातिरदारों विषेषकर शादी या त्यौहार पर।

मुर्गी पालन से जुड़ी समस्यायें: भारत के ग्रामीण परिवेश में महिलाओं का पशुपालन में 74 प्रतिशत योगदान रहता है। घरेलू मुर्गियाँ घूम-घूम कर जितना भी आहार जुटाएं, वह उनके अण्डा अथवा माँस उत्पादन हेतु पर्याप्त नहीं होता। यही कारण है कि घरेलू मुर्गियों के वनज में बढ़ोत्तरी फार्म मुर्गियों की उपेक्षा कम होती है। देसी मुर्गियों में एक किलो वनज प्राप्त करने में लगभग 6 माह का समय लग जाता है। चूजों को ठंड, बरसात, कई प्रकार की बीमारियों, चील-कौओं, कुत्ते, भेड़िये आदि से सुरक्षित न रख पाने के कारण ग्रामीण परिवेश में चूजों  मुत्यु दर बहुत अधिक पाई जाती है। अंडे सेने वाली मुर्गियों हेतु पृथक से व्यवस्था नहीं की जाती जिससे कुछ भू्ण-रहित अण्डों से चूजे उत्पन्न नहीं हो पाते। मुर्गीपालक अपनी मुर्गियों पर लगभग कोई खर्च नहीं करते और न ही उससे हुए लाभ का कोई हिसाब रखते हैं।

मुर्गीपालन का महत्व: मुर्गीपालन एक आधुनिक और लाभकारी कृषि प्रवृत्ति है जो ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक लाभ प्रदान कर रही है। इसके साथ यह किसानों को सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से आर्थिक स्वावलंबन प्रदान करके उन्हें आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ा रही है। मुर्गीपालन से किसानों को न केवल आत्मनिर्भरता मिल रही है बल्कि उन्हें बाजार में एक नए आय का स्रोत भी प्राप्त हो रहा है।

मुर्गीपालन में नई तकनीकें: इनक्यूबेटर प्रणाली इनक्यूबेटर प्रणाली एक ऐसी तकनीक है जो मुर्गियों के अंडे देने की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है। यह तकनीक सुनिश्चित करती है कि अंडे सुरक्षित हों और सही मानकों पर पहुंचें। इससे मुर्गीपालकों को सुरक्षित और अधिक स्वास्थ्यपूर्ण चूजे मिलते हैं जो उच्च गुणवत्ता वाले अंडे देने के लिए सक्षम होते हैं।

पोल्ट्री फार्मिंग के लिए स्मार्ट कैबिन: अनुभवी किसानों ने स्मार्ट कैबिन की तकनीक का अभ्यास किया है जिससे मुर्गीपालकों को सुरक्षित और अंडे देने में सक्षम बनाया जा सकता है। कैबिन को विशेष आयाम और आकार के साथ डिज़ाइन किया गया है ताकि मुर्गी वहां सुरक्षित रूप से अंडे दे सकें। इसमें आंध्रे लगे गए हैं जो सुनिश्चित करते हैं कि अंडे टूटे नहीं जाएं। अद्वितीय उत्पादन पद्धति नई तकनीकों ने उत्पादन प्रक्रिया में भी सुधार किया है। अद्वितीय उत्पादन पद्धतियों का प्रयोग करके किसानों को बेहतर और अधिक उत्पादकर्ता बनाया जा सकता है। इससे उन्हें अधिक उत्पाद और अधिक आय प्राप्त होती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

मुर्गी की कुछ प्रजातियाँ: देसी मुर्गी- यह मुर्गी लगभग 30 से 40 अंडे प्रतिवर्ष तथा 6 से 8 माह में एक किलो शरीर भार होता है। मांस एवं अंडों के लिये पाला जाता है अधिक पौष्टिक एवं स्वादिष्ट मांस की मान्यता होती है तथा आंगन एवं घर के आस-पास खुले स्थान में पाली जाती है और कम अंण्डा उत्पादन एवं कम शारीरिक वृद्धि होती है। इसकी कीमत बाजार में 5 से 6 रू. प्रति अंडा एवं 130 से 140 रू. प्रति किलो जीवित वजन है।  bब्रायलर मुर्गी- 24 घंटे मुर्गी घर में रघकर दाना-पानी उपलब्ध कराया जाता है। यह मांस के लिये पाला जाता है। एक से डेढ़ माह में लगभग 1.5 किलो वजन तथा अधिक शारीरिक वृद्धि होती है। इसकी कीमत बाजार में 90 से 100 रू. प्रति किलो होती है। bलेयर मुर्गी- इस मुर्गी का अधिक अण्डोत्पादन एवं कम शारीरिक वृद्धि होती है। यह अण्डों के लिए पाला जाता है। मुर्गी घर में 24 घंटे रखकर एवं पूरा दाना-पानी वहीं कराया जाता है। बाजार में इसकी कीमत रू. 2 से 3 प्रति अंडा है।

मुर्गी आवास की व्यवस्था: एक मुर्गी वर्ष भर में 30-40 अण्डें देती है। कुछ अण्डों में भ्रूण नहीं होता लेकिन बाकी के करीब 20-22 अंडों से चूजे निकलते हैं। अच्छा मुर्गी आवास ठंड बरसात, तेज धूप एवं जंगली जानवरों से बचाता है, तथा आवास होने से मुर्गियों को दाना-पानी देना तथा दवा पिलाना आसान होता है। 

अण्डे सेने हेतु व्यवस्था: अंडें सेने वाली मुर्गियों को अलग से व्यवस्था करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए बांस की बनी टोकनी का उपयोग समुचित संख्या में करना चाहिए ताकि अंडों को टूट-फूट से बचाया जा सके। लगभग 1 वर्ग फीट तथा 6-9 इंच गहराई की एक टोकनी 5 मुर्गियों के लिए पर्याप्त है। इस टोकनी में पैरा बिछाने से अंडे नहीं फूटेंगे।

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