मध्यप्रदेश में जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए योजना बनाई जा रही है। इस योजना में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से बचते हुए प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाता है। राज्य सरकार इस खेती को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष क्लस्टर स्थापित कर रही है, जिससे प्रदेश को जैविक खेती में अग्रणी राज्य बनाया जा सके। केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुरूप जैविक और प्राकृतिक खेती के क्षेत्रफल में वृद्धि के प्रयास किए जा रहे हैं।
प्रदेश में रेशम उत्पादन और मधुमक्खी पालन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे किसानों को अतिरिक्त आय के अवसर मिलें। वर्तमान में मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, छिंदवाड़ा, बैतूल, कटनी, उमरिया और अनूपपुर जैसे जिलों में जैविक खेती प्रमुखता से की जा रही है। यह क्षेत्रफल देश में सबसे अधिक है। राज्य सरकार ने जैविक खेती के विकास के लिए सहकारिता विभाग को कृषि और उद्यानिकी विभागों के साथ जोड़ा है। साथ ही, प्रदेश में प्राकृतिक खेती बोर्ड का गठन किया गया है, जो प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये प्रयास कर रहा है।
किसानों की समृद्धि के लिए ठोस कदम:
राज्य सरकार अगले पाँच वर्षों में कृषि निर्यात को दोगुना करने के लक्ष्य पर कार्य कर रही है। इसके तहत सोयाबीन की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद को और अधिक बढ़ाया जाएगा।
प्रदेश में श्रीअन्न प्रमोशन एजेंसी के माध्यम से मोटे अनाजों (श्रीअन्न) के प्रचार-प्रसार को गति दी जा रही है। साथ ही, दाल उत्पादन को बढ़ाने के लिए मिशन दाल शुरू किया गया है, जिसके तहत अगले पांच वर्षों में दाल उत्पादन को सुधारने और उसकी प्रोसेसिंग एवं मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
मध्यप्रदेश में ‘नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल्स: प्रदेश में भारत सरकार के "नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल्स" को प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है। इसके तहत 10 विशिष्ट सोयाबीन एफपीओ (Farmer Producer Organizations) का गठन किया जा रहा है, जिससे किसानों को बाजार से बेहतर जुड़ाव और उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके। राज्य सरकार की इन पहलों से कृषि क्षेत्र में नए अवसरों का सृजन होगा, किसानों की आय बढ़ेगी और प्रदेश को जैविक एवं प्राकृतिक खेती में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी।