नई दिल्ली में "जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में वर्षा आधारित क्षेत्रों में परंपरागत किस्मों के माध्यम से कृषि जैव विविधता को पुनर्जीवित करना" विषय पर आयोजित बहु-हितधारक सम्मेलन में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव डॉ. देवेश चतुर्वेदी ने परंपरागत कृषि और बागवानी किस्मों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि उनका मंत्रालय परंपरागत किस्मों को बढ़ावा देने के लिए एनएमएनएफ, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ), बीज विकास कार्यक्रम और एनएफएसएम जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से काम कर रहा है।
डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि परंपरागत किस्मों में बेहतर स्वाद, सुगंध, रंग, पोषण समृद्धि और पकाने की गुणवत्ता जैसे विशेष गुण होते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि इन किस्मों को समूहों में उगाया जाना चाहिए और बेहतर बाजार मूल्य प्राप्त करने के लिए उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जाना चाहिए। उन्होंने इस दिशा में कुछ सफल उदाहरण भी साझा किए।
वर्षा आधारित क्षेत्रों में निवेश की आवश्यकता: राष्ट्रीय वर्षा आधारित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) के सीईओ, डॉ. फैज़ अहमद किदवई ने कहा कि एनआरएए राज्यों को इन क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है, क्योंकि इनकी आवश्यकताएं और संवेदनशीलता अधिक है।
आईसीएआर-एनबीपीजीआर के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह और आईसीएआर-IIOR के पूर्व निदेशक डॉ. के.एस. वरप्रसाद ने परंपरागत किस्मों के संरक्षण और उपयोग पर बल दिया। उन्होंने बताया कि देश में लगभग 50% कृषि क्षेत्र वर्षा आधारित है, जहां 60% बीज आवश्यकताएं किसानों द्वारा प्रबंधित अनौपचारिक बीज प्रणालियों से पूरी होती हैं। विशेषज्ञों ने इन प्रणालियों को औपचारिक रूप से संरक्षित करने और सरकार से अधिक समर्थन की मांग की।
बीज संरक्षक और राज्यों के अनुभव साझा किए गए: सम्मेलन में तमिलनाडु, ओडिशा सहित 10 राज्यों के चैंपियन किसानों, बीज संरक्षकों और राज्य प्रतिनिधियों ने परंपरागत बीजों का प्रदर्शन किया और उनके संरक्षण के अनुभव साझा किए। पैनल चर्चाओं में सामुदायिक बीज प्रणालियों के औपचारिककरण, एमएसपी के लिए समर्थन और बुनियादी ढांचे में सरकारी योगदान पर जोर दिया गया।
परंपरागत किस्मों की भूमिका और कार्य योजना: कार्यशाला में जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में परंपरागत किस्मों के महत्व पर विचार-विमर्श किया गया। विशेषज्ञों ने इन किस्मों को प्राकृतिक खेती योजनाओं से जोड़ने और बाजार तक पहुंच बढ़ाने के लिए कार्य योजना विकसित करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि भारत में 61% किसान वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर हैं, जो कि देश के 50% भूभाग पर फैली हुई है। इन क्षेत्रों में जलवायु की अस्थिरता और कम उपजाऊ मिट्टी जैसी चुनौतियां हैं, जिनका समाधान परंपरागत किस्मों के उपयोग से संभव है।
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