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उत्तर भारत में भूजल की कमी से खाद्य सुरक्षा को खतरा, जाने भविष्य में भूजल संकट से कैसे निपटें

उत्तर भारत में जल संकट के कारण, प्रभाव और समाधानों के बारे में विस्तार से जानें
उत्तर भारत में जल संकट के कारण, प्रभाव और समाधानों के बारे में विस्तार से जानें

एक अध्ययन से पता चला है कि गर्मी के मानसून और गर्म सर्दियां जो कि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हो रहे हैं, ने पिछले दो दशकों में उत्तर भारत में भूजल के स्तर में भारी गिरावट पैदा की है। अध्ययन में पता चला कि भूजल का स्तर प्रति वर्ष 1.5 सेमी की दर से घट रहा है। 2002 से 2021 के मध्य भूजल में 450 किमी³ की कमी आई है। इस कमी ने सिंचाई जल की मांग बढ़ा दी है और भूजल पुनर्भरण को कम कर दिया है, जो भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। उत्तर भारत में कृषि उत्पादन के लिए भूजल महत्वपूर्ण है, जो देश की एक अरब से अधिक आबादी को भोजन उपलब्ध कराता है। 

ग्रीष्मकालीन मानसून की कमी और गर्म सर्दियों के कारण भूजल संकट:

यह शोध आईआईटी गांधीनगर के डॉ. विमल मिश्रा के नेतृत्व में किया गया और एडवांसिंग अर्थ एंड स्पेस साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इस अध्ययन में यह जांच की गई कि कैसे गिरते हुए ग्रीष्मकालीन मानसून और गर्म होती सर्दियाँ भारत में भूजल भंडारण को प्रभावित कर रही हैं। अध्ययन के अनुसार, 1951 से 2021 के बीच उत्तर भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून की वर्षा में लगभग 8% की महत्वपूर्ण गिरावट आई है, जबकि सर्दियाँ अधिक गर्म हो गई हैं। गर्मी के मानसून की कमी और गर्म होती सर्दियों के साथ जलवायु में बदलाव से सिंचाई जल की मांग बढ़ेगी और भूजल पुनर्भरण में कमी आएगी। इससे भविष्य में कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए भूजल स्थिरता उपायों की आवश्यकता होगी।

भविष्य में भूजल संकट से निपटने के उपाय:

अध्ययन में इन-सिटू अवलोकनों, उपग्रह डेटा, और एक हाइड्रोलॉजिकल मॉडल का उपयोग किया गया, जिसमें सिंचाई और भूजल पंपिंग की भूमिका को ध्यान में रखा गया। डॉ. मिश्रा ने कहा कि हमने ग्रीष्मकालीन मानसून की कमी और गर्म होती सर्दियाँ, उत्तर भारत में भूजल की कमी को तेज कर रही हैं, और यह प्रवृत्ति भविष्य में भी जारी रहेगी। उदाहरण के लिए, भविष्य में यदि ग्रीष्मकालीन मानसून में 10-15% की कमी और सर्दियों के तापमान में 1-4°C की वृद्धि होती है, तो सिंचाई जल की मांग में 6-20% की वृद्धि और भूजल पुनर्भरण में 6-12% की कमी हो सकती है।

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अध्ययन ने भूजल स्थिरता उपायों की आवश्यकता पर जोर दिया है ताकि भविष्य में उत्पन्न होने वाले खतरों को कम किया जा सके। इसमें सुझाव दिया गया है कि ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान भूजल के कम निकासी और इसके पुनर्भरण को बढ़ावा देना आवश्यक है ताकि भविष्य में कृषि उत्पादकता सुनिश्चित की जा सके। इसमें जल को सिंचाई के लिए उपयोग करना, बाढ़ नियंत्रण तथा हाइड्रोलॉजिकल सर्वे और बाँध निर्माण करना, अधिक जल तथा कम जल वाले स्थानों को स्थानांतरण करना शामिल है।

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