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Ridge Gourd Cultivation in Hindi: तुरई की खेती और इसकी उन्नत किस्म से बढे़गी आमदनी, किसान मार्च में करें बुवाई

Ridge Gourd Cultivation in Hindi
Ridge Gourd Cultivation in Hindi

तोरई एक महत्वपूर्ण पौष्टिक सब्जी है। भारत में इसकी खेती व्यापक पैमाने पर की जाती है। तोरई के सूखे बीजों से तेल भी निकाला जाता है। फल में अधिक मात्रा में पानी होने के कारण इसके फल ठण्डे होते हैं। तोरई छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों के बाजारों में इसकी मांग रहती है। कैल्शियम, लोहा , फॉस्फोरस और विटामिन-ए के गुणों से भरपूर नकदी फसल है। 

तोरई की उन्नत किस्में (Varieties of Ridge Gourd in Hindi)

  1. कल्याणपुर हरी चिकनी: यह किस्म चन्द्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय कानपुर द्वारा चयनित किया गया है। इसके फल मध्यम आकार के गुदेदार एवं पतले होते हैं। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 350-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
  2. काशी दिव्या: यह किस्म भारतीय अनुसंधान संस्थान वाराणसी द्वारा विकसित किया गया है। इसकी तने की लम्बाई 4-5 मीटर हल्के हर व 20-25 सेमी. लम्बे होते हैं। फल बुवाई के 45-50 दिनो के बाद तुडाई के लिये तैयार हो जाते हैं। इसकी उत्पादन क्षमता 130-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
  3. स्वर्ण प्रभा: यह किस्म आई.सी.ए.आर राँची द्वारा विकसित किया गया है। इसके फल मध्यम आकर के जिनकी लम्बाई 20-25 से.मी. व औसत फल भार 15-200 ग्राम होता है। 70-75 दिन बाद तुड़ाई कर सकते हैं। इसकी उत्पादन क्षमता 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
  4. पंत चिकनी तोरई -1: इस किस्म को गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर द्वारा विकसित किया गया है। इसके फल हरे बेलनाकार व लम्बे होते हैं। 25 दिन बाद फल की तुड़ाई कर सकते हैं। इसकी उत्पादन क्षमता 140-170 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

मिट्टी और जलवायु (Soil and Climate for Ridge Gourd Cultivation in Hindi)

तोरई की खेती के लिये अच्छी जल विकासी वाली सभी प्रकार की मृदाओं की जा सकती है। अच्छी उपज के लिये दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम उपयुक्त होती है। इसका पी.एच. 6-7 खेती के लिये आदर्श मानी जाती है। इसकी खेती के लिये गर्म तथा आर्द्र जलवायु आवश्यक है। इसकी खेती ग्रीष्म व वर्षा (जायद तथा खरीफ) दोनों ऋतुओं में की जा सकती है। इसकी खेती के लिये 32-38 डिग्री सेल्सियस तापमान सर्वोत्तम है। 

तुरई की खेती कैसे करें (How to do Ridge Gourd Cultivation in Hindi)

तुरई की बुवाई नाली विधि द्वारा की जाती है। इसमें सबसे पहले खेत की जुताई करके समतल किया जाता है फिर वर्टिकल में नाली बनाई जाती है। इसके बाद 2.5-3.0 मीटर की दूरी पर 45 सेमी. चैड़ी और 30-40 सेमी. गहरी नालियों में दोनों किनारों पर 50-60 से.मी. की दूरी पर बीज की बुवाई कर देना चाहिए। एक जगह पर कम से कम एक से दो बीज लगाना चाहिए तथा बीज जमने के बाद एक पौधा निकाल देते हैं। खेत में पलवार का प्रयोग करने से अच्छी उपज प्राप्त होती है। इससे मृदा तापमान बढ़ने व नमी संरक्षित होने के कारण बीजों का जमाव बेहतर होता है और खेत में खरपतवार नही उग पाते जिससे पैदावार अच्छी होती है।

तुरई की बुवाई कब की जाती है

तुरई के लिये ग्रीष्मकालीन फसल की बुवाई फरवरी-मार्च तथा वर्षा ऋतु में फसल की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है। एक हेक्टेयर खेत में बुवाई के लिये 3-5 कि.ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। तोरई की फसल 70-80 दिनों में फल देने के लिये तैयार हो जाती है।

खाद एवं उर्वरक: तुरई की अधिक पैदावार के लिये 20-25 टन सड़ी गोबर की खाद खेत में मिलाते हैं और 30-40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 25-30 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 25-30 कि.ग्रा. पोटाश की प्रति हेक्टेयर के हिसाब के डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय खेत में डालते हैं। शेष बची नाइट्रोजन की मात्रा बुवाई के 30-40 दिन बाद जड़ों के पास डालना चाहिए।

तुरई की सिंचाई: तुरई की वर्षाऋतु फसल के लिये सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। यदि खेत में नमी की कमी हो तो सिंचाई कर देनी चाहिए। ग्रीष्मकालीन फसल की उपज सिंचाई पर निर्भर करती है। गर्मियों में 4-5 दिनो के अन्तराल पर सिंचाई करना चाहिए।

तुड़ाई तथा भण्डारण: तुरई की तुड़ाई हमेशा मुलायम अवस्था में करना चाहिए देर से तुडाई करने पर कड़े रेशे बन जाते हैं। फलों की तुड़ाई 6-7 दिनांक के अंतराल पर करनी चाहिए। इस फसल की पूरी 8 तुड़ाई की जा सकती है। फलों को ताजा रखने के लिये ठण्डे तथा छायादार स्थानों पर रखना चाहिए तथा समय-समय पर पानी छिड़कते रहना चाहिए।

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कीट तथा रोग प्रबंधन:

  1. सफेद मक्खी कीट: यह कीट पौधों का रस चूसते हैं और इनके द्वारा स्त्रावित मल काले कज्जली मोल्ड्स विकसित करते हैं। यह येलो मोजैक विषाणु को भी एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलाती हैं। नियंत्रण इसके नियंत्रण के लिये बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू पी या थाईमेथोक्साम 70 डब्ल्यू एस की 3 ग्राम/किग्रा बीज की दर से शोधित कर बुवाई करना चाहिए। 
  2. पर्ण सुरंगक कीट:  इसके लार्वा पत्तियों में सुरंग बनाकर पर्ण हरित को खाते हैं जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होते है। नियंत्रण इसकी रोकथाम के लिये 4 प्रतिशत नीम की गिरी के अर्क का छिड़काव करना चाहिए।
  3. चूर्णिल आसिता रोग- यह रोग स्फेरोथिका फुलजीनिया एवं एरीसाइफी साइकोरेसीरम फफूंद है। इस रोग से संश्लेषण पत्तियां भूरे रंग की होकर सिकुड़ जाती है। पकने से पहले ही पत्तियां झड़ जाती है तथा लताएं मर जाती है। नियंत्रण रोकथाम के लिये पौधे के संक्रमित भाग को जलाकर समाप्त कर देना चाहिए। बुवाई से पहले थीरम कैप्टान कारबेन्डवाजिम की 2.5-3.0 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. से उपचारित करके बुवाई करना चाहिए।
     

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