गन्ना एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, जिसकी सामान्य बुवाई उत्तर भारत के राज्यों — उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में फरवरी से मार्च के बीच होती है। हालांकि, कई बार परिस्थितियों के कारण किसानों को गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल में गन्ने की पछेती बुवाई करनी पड़ती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सही किस्म का चुनाव कर उचित विधियों को अपनाया जाए, तो पछेती बुवाई से भी शानदार पैदावार ली जा सकती है।
गर्मियों के मौसम में तापमान अधिक होने के कारण मिट्टी की नमी तेजी से खत्म होती है, जिससे गन्ने के अंकुरण और प्रारंभिक विकास में बाधा आ सकती है। ऐसे में पछेती बुवाई के लिए कुछ विशेष सावधानियां बरतना जरूरी है।
बीज का चयन: पछेती बुवाई में पारंपरिक गन्ने के टुकड़ों के बजाय सिंगल बड नर्सरी पौध या एसटीपी विधि से तैयार पौध का उपयोग करना अधिक लाभकारी होता है। ये पौध पहले से विकसित होती हैं और बुवाई में हुई 30-35 दिन की देरी की भरपाई कर लेती हैं।
यदि नर्सरी पौध उपलब्ध न हो, तो गन्ने के दो या तीन आंखों वाले ताजे व रोग-मुक्त टुकड़े प्रयोग करें। बीज के लिए गन्ने के ऊपरी एक-तिहाई हिस्से का चयन करें क्योंकि उसमें अंकुरण क्षमता अधिक होती है।
कतारों की दूरी सामान्यत: 4.5 फीट रखी जाती है, लेकिन पछेती बुवाई में इसे घटाकर 3 फीट कर देना चाहिए। इसके साथ बीज की मात्रा भी थोड़ी बढ़ा देनी चाहिए।
गन्ने की पछेती बुवाई के लिए ऐसी किस्मों का चयन करना चाहिए जो कम समय में परिपक्व हो जाएं और उच्च तापमान व सूखे की स्थिति में भी अच्छा उत्पादन दें। प्रमुख उपयुक्त किस्में कोसा 15023, कोलख 1602, कोसा 10231 शामिल हैं। ये किस्में न केवल रोग प्रतिरोधी होती हैं, बल्कि इनकी उपज क्षमता भी उच्च होती है।
खेत की तैयारी और नमी का ध्यान रखें: पछेती बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना अनिवार्य है। यदि खेत में नमी की कमी हो, तो बुवाई से पहले पलेवा (सिंचाई) कर खेत को अच्छी तरह तैयार करें। मिट्टी को भुरभुरी बनाना भी अंकुरण के लिए आवश्यक है।
बीज उपचार और कीट नियंत्रण न भूलें: बुवाई से पहले गन्ने के टुकड़ों को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए 0.1% बाविस्टिन या थायोफिनेट मिथाइल के घोल में 10 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें। पछेती गन्ना फसल कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है, अतः नियमित निरीक्षण करें और समय पर जैविक या रासायनिक उपाय अपनाएं।