भिंडी की खेती कम समय में तैयार होने वाली और कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल है। इसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी आसानी से उगाया जा सकता है क्योंकि इसे अधिक पानी की जरूरत नहीं होती। भिंडी में रोग और कीटों का प्रकोप अन्य फसलों की तुलना में कम होता है, और इसकी बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है। एक एकड़ में भिंडी की खेती से किसान करीब 3 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा सकते हैं।
भारत में भिंडी की खेती गर्मी और बरसात के मौसम में होती है। पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुआई मार्च-अप्रैल में होती है, जबकि असम, बंगाल, ओडिशा और बिहार में फरवरी के अंत तक बुआई की जाती है। उत्तर भारत में फरवरी-मार्च के दौरान इसकी खेती शुरू की जा सकती है।
उत्तम उत्पादन के लिए पूसा मखमली, पंजाब पद्मनी, परभनी क्रांति, पंजाब-7 और अर्का अनामिका जैसी उन्नत किस्में उपयुक्त हैं। एक हेक्टेयर में बुआई के लिए 20 किलो बीज की जरूरत होती है। अच्छे अंकुरण के लिए बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर फिर गर्म स्थान में रखना चाहिए। बीजजनित रोगों से बचाव के लिए बुआई से पहले थायरम या कैप्टॉन से उपचार करें।
भिंडी की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी आवश्यक होती है। खेत को गहरी जुताई कर तैयार करें और प्रति हेक्टेयर 30 टन गोबर की खाद डालें। मिट्टी परीक्षण के अनुसार उर्वरकों का उपयोग करें। बुआई से पहले 40-40 किग्रा नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश मिलाएं। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के 3-4 सप्ताह बाद और शेष फूल आने के समय दें।
मुनाफा और देखभाल: भिंडी की फसल 45-60 दिनों में तैयार हो जाती है और 5-6 महीने तक फल देती है। हर 4-5 दिन में तुड़ाई और 5-6 दिन में सिंचाई करें। उन्नत किस्मों से प्रति हेक्टेयर 60-70 क्विंटल तक उत्पादन संभव है। बाजार में भिंडी 30-50 रुपये प्रति किलो बिकती है, जिससे किसान प्रति हेक्टेयर 3 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।