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हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बनेगा खारा जल मत्स्य पालन हब, रोजगार और आजीविका को मिलेगा नया आयाम

मछली पालन में नई उम्मीद
मछली पालन में नई उम्मीद

मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधीन मत्स्य विभाग के सचिव ने मुंबई स्थित ICAR-केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान का दौरा किया और हरियाणा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश राज्यों में खारे जल वाले झींगा पालन की प्रगति की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक का उद्देश्य खारे भूभागों की संभावनाओं का उपयोग करते हुए रोजगार और आजीविका के अवसरों को सृजित करना था। 

राज्यवार प्रगति और योजनाए State wise progress and plans:

बैठक में राज्य मत्स्य अधिकारियों ने खारे जल और झींगा पालन की स्थिति, उपलब्धियां और चुनौतियों की जानकारी दी। 

  1. उत्तर प्रदेश ने मथुरा, आगरा, हाथरस और रायबरेली जैसे ज़िलों में 1.37 लाख हेक्टेयर खारे जल भूमि की उपलब्धता और पीएमएमएसवाई योजना के तहत जानकारी दी।
  2. राजस्थान ने चुरू और गंगानगर जैसे खारा प्रभावित ज़िलों में झींगा (पीनियस वन्नामेई), मिल्कफिश और पर्ल स्पॉट पालन की बढ़ती गतिविधियों की जानकारी दी। चुरू में एक डायग्नोस्टिक लैब भी स्थापित की गई है।
  3. पंजाब ने श्री मुक्तसर साहिब और फाजिल्का जैसे दक्षिण-पश्चिमी ज़िलों में झींगा पालन के विस्तार, 30 टन कोल्ड स्टोरेज और आइस प्लांट, तथा एक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की जानकारी साझा की।
  4. हरियाणा ने अब तक ₹57.09 करोड़ के निवेश से 13,914 टन उत्पादन हासिल करने की सफलता बताई।

बंजर से ‘संपत्ति भूमि’ की ओर कदम Step from barren to ‘property land’:

हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लगभग 58,000 हेक्टेयर खारा प्रभावित भूमि चिन्हित की गई है, लेकिन फिलहाल केवल 2,608 हेक्टेयर का ही उपयोग हो रहा है। इन अनुपयोगी भूमि क्षेत्रों को मत्स्य पालन के जरिए आजीविका और रोजगार के अवसर में बदला जा सकता है। भारत विश्व में झींगा उत्पादन में दूसरे स्थान पर है और समुद्री उत्पादों के निर्यात मूल्य का 65% से अधिक हिस्सा झींगा से आता है। इसके बावजूद, इनलैंड खारे जल संसाधनों का उपयोग सीमित रूप से हो रहा है।

किसानों की प्रमुख चुनौतियाँ:  बैठक में किसानों ने उच्च निवेश लागत, सीमित सब्सिडी, 2 हेक्टेयर क्षेत्र सीमा, अस्थिर खारापन स्तर, उच्च भूमि पट्टा दर, गुणवत्तायुक्त बीज की उपलब्धता की कमी, विपणन सुविधाओं की अनुपलब्धता, बढ़ती लागत और कम बाजार मूल्य जैसी प्रमुख समस्याएं साझा कीं। इन समस्याओं से निवेश पर कम लाभ मिल रहा है, जिससे किसान इस क्षेत्र में अधिक सरकारी सहायता की मांग कर रहे हैं।

सुझाव और आगे की रणनीति: राज्यों ने कई अहम सुझाव दिए, जिनमें इकाई लागत को ₹25 लाख तक बढ़ाना, 2 हेक्टेयर की सीमा को बढ़ाकर 5 हेक्टेयर करना, पॉलीथिन लाइनिंग पर अधिक सब्सिडी देना, सिरसा में एकीकृत एक्वा पार्क की स्थापना और विपणन चैनलों को सुदृढ़ करना है। 

मत्स्य विभाग ने ICAR, राज्य सरकारों और अन्य संस्थानों के सहयोग से इस क्षेत्र के लिए दीर्घकालिक रणनीति विकसित करने पर जोर दिया। इसमें जागरूकता अभियान, तकनीकी जानकारी के प्रसार के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों की भागीदारी, संभावित क्लस्टरों की पहचान और उत्पादन क्षेत्र के विस्तार जैसे कदम शामिल हैं।

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