भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के केंद्र (NRSC) द्वारा विकसित "क्रॉप" नामक एक अर्द्ध-स्वचालित और बड़े स्तर पर लागू की जाने वाली प्रणाली के माध्यम से भारत में रबी सीजन के दौरान फसल बुवाई और कटाई की प्रगति का लगभग वास्तविक समय में निगरानी की जा रही है। इस प्रणाली का उपयोग उपग्रहों से प्राप्त ऑप्टिकल और सिंथेटिक एपर्चर रडार डाटा के माध्यम से गेहूं की बुवाई और फसल की स्थिति का वास्तविक आकलन किया गया।
वर्ष 2024-25 के रबी सीजन के बीच आठ प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों-उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र बुवाई की पर निगरानी रखी गई। 31 मार्च 2025 तक उपग्रह डाटा के अनुसार देशभर में गेहूं का बुवाई क्षेत्रफल 330.8 लाख हेक्टेयर आंका गया है।
फसल की स्थिति, सूखे के प्रभाव और समग्र वनस्पति स्वास्थ्य की निगरानी उपग्रह आधारित "वेगिटेशन हेल्थ इंडेक्स" (VHI) से की गई। मासिक निगरानी के अनुसार, जनवरी 2025 में फसल की स्थिति सामान्य रही, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में समय पर बुवाई और संतोषजनक वृद्धि देखी गई। फरवरी में तापमान में वृद्धि और वर्षा की कमी के कारण फसल पर गर्मी के तनाव की आशंका बढ़ी, जिससे संभावित पैदावार हानि की चिंताएं उत्पन्न हुईं। हालांकि मार्च के अंत तक अनुकूल मौसम ने फसलों को संभलने का अवसर दिया, जिससे फसल की परिपक्वता अच्छी तरह आगे बढ़ी और उत्पादन के सकारात्मक अनुमानों को बल मिला। दिसंबर से शुरू होकर अप्रैल के पहले सप्ताह तक रबी फसलों की कटाई का सिलसिला जारी रहा।
गेहूं उत्पादन का उपग्रह डाटा के माध्यम से आकलन
राष्ट्रीय स्तर पर गेहूं के उत्पादन का आकलन उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों (फसल क्षेत्र, बुवाई तिथि, मौसम के दौरान फसल स्थिति) को 5 किमी × 5 किमी के स्थानिक विभेदन पर आधारित फसल वृद्धि सिमुलेशन मॉडल में सम्मिलित कर किया गया। 31 मार्च 2025 तक आठ प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में कुल गेहूं उत्पादन 122.724 मिलियन टन का पूर्वानुमान किया गया है।
फसल निगरानी की नई तकनीक, कृषि योजना में आएगा बदलाव
यह अध्ययन विभिन्न उपग्रह डाटा स्रोतों के माध्यम से फसल बुवाई, कटाई और उत्पादन का वास्तविक समय में निगरानी करने की पद्धति को प्रदर्शित करता है। यह पायलट परियोजना एक ‘प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट’ के रूप में कार्य कर रही है, जो भविष्य में इस प्रणाली के परिचालनात्मक स्तर पर विस्तार और परिशुद्धता बढ़ाने की संभावनाओं को उजागर करती है। इसका उद्देश्य कृषि योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए सूचित निर्णय-निर्माण में सहायक बनना है।