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वैज्ञानिकों ने मीठे पानी के तालाबों में हिल्सा मछली पालन करने में सफलता हासिल की है। ICAR-NASF प्रोजेक्ट के दूसरे चरण में इस कामयाबी को हासिल किया गया। कोलाघाट में 689 ग्राम वजन की हिल्सा मछली पाली गई, जो अब तक की सबसे बड़ी है। तालाब में पाली गई हिल्सा का विकास खुले पानी की तुलना में बेहतर है।
यह सफलता हिल्सा मछली की जलीय कृषि की संभावना को दर्शाता है।
दरअसल, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए मीठे पानी के तालाबों में हिल्सा मछली का सफलतापूर्वक पालन किया है। ICAR-NASF प्रोजेक्ट के दूसरे चरण के तहत, वैज्ञानिकों ने हिल्सा के बीजों को विभिन्न स्थानों पर तालाबों में पाला, जिनमें राहरा, काकद्वीप और कोलाघाट शामिल हैं।
कोलाघाट में, वैज्ञानिकों ने 689 ग्राम वजन और 43.6 सेमी लंबाई की एक हिल्सा मछली पाली, जो अब तक की सबसे बड़ी है। यह उपलब्धि महत्वपूर्ण है क्योंकि हिल्सा मछली आमतौर पर नदियों में पाई जाती है और इसकी बाजार में उच्च मांग है।
ICAR के वैज्ञानिकों का कहना है कि तालाबों में उचित प्रबंधन के साथ हिल्सा मछली का सफलतापूर्वक पालन किया जा सकता है।
यह हिल्सा मछली की जलीय कृषि की संभावना को दर्शाता है, जो किसानों के लिए आय का एक नया स्रोत प्रदान कर सकता है और इस स्वादिष्ट मछली को अधिक लोगों तक पहुंचा सकता है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि मछलियों को विशेष रूप से तैयार किए गए भोजन के अलावा जीवित ज़ूप्लांकटन भी खिलाया गया था। पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए विशेष ध्यान दिया गया था, जिसमें खारापन, पीएच और ऑक्सीजन का स्तर शामिल था। ICAR-सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट, बैरकपुर इस सफलता के लिए जिम्मेदार है।
यह सफलता हिल्सा मछली की आपूर्ति और किसानों की आय में वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।