भारत 7,500 किलोमीटर लंबी समुद्री तटरेखा से समृद्ध है, जो समुद्र की अनगिनत संभावनाओं का द्वार खोलती है। पारंपरिक मत्स्य उद्योग के साथ-साथ अब सीवीड (समुद्री शैवाल) की खेती तटीय समुदायों के लिए उभरता हुआ आजीविका का नया माध्यम बन रही है।
सीवीड समुद्र और महासागरों में उगने वाला एक समुद्री पौधा है, जो पोषण तत्वों से भरपूर होता है। इसमें विटामिन, खनिज, अमीनो एसिड और 54 से अधिक सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह कैंसर, मधुमेह, गठिया, हृदय रोग और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से लड़ने में सहायक है। साथ ही, यह रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। सीवीड की खेती भूमि, ताजे पानी, उर्वरक या कीटनाशकों की आवश्यकता के बिना होती है, जिससे यह पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ विकल्प बन जाती है।
वैश्विक स्तर पर सीवीड उद्योग लगभग 5.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है। जापान, चीन और दक्षिण कोरिया इसके सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक यह बाज़ार 11.8 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। भारत में भी इसका उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) के तहत भारत ने 5 वर्षों में 11.2 लाख टन सीवीड उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
सीवीड का उपयोग सिर्फ भोजन तक सीमित नहीं है, यह कई औद्योगिक उत्पादों में भी प्रयोग होता है। भूरे सीवीड से प्राप्त होता है; खाद्य, कॉस्मेटिक और चिकित्सा उत्पादों में उपयोग। लाल सीवीड से प्राप्त; डेज़र्ट, जैम और लैब कल्चर में उपयोग। आइसक्रीम, डेयरी प्रोडक्ट और टूथपेस्ट में प्रयोग होता है।
भारत में सीवीड को बढ़ावा: भारत सरकार और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) राज्य सरकारों और अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर सीवीड खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। 2020 में शुरू की गई प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत सीवीड क्षेत्र में ₹640 करोड़ का निवेश किया गया है। इसमें से ₹194.09 करोड़ से तमिलनाडु में मल्टीपर्पस सीवीड पार्क और दमण और दीव में सीवीड ब्रूड बैंक की स्थापना की जा रही है। अब तक 46,095 राफ्ट और 65,330 मोनोक्लाइन ट्यूबनेट्स स्वीकृत किए जा चुके हैं।
प्रमुख लाभ:
टिशू कल्चर से सीवीड उत्पादन में नई क्रांति:
CSIR-CSMCRI द्वारा विकसित टिशू कल्चर तकनीक से तमिलनाडु में Kappaphycus alvarezii की खेती को बढ़ावा मिल रहा है। इस तकनीक से उत्पादित पौधों से 20–30% अधिक उपज मिली है। रामनाथपुरम, पुदुकोट्टई और तूतीकोरिन जिलों में किसानों को वितरित पौधों से मात्र दो चक्रों में 30 टन सीवीड का उत्पादन किया गया। सीवीड खेती भारत में पोषण सुरक्षा, सतत कृषि और तटीय आजीविका को एक नई दिशा दे रही है। सरकार की योजनाओं और वैज्ञानिक प्रयासों से यह क्षेत्र न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बना रहा है, बल्कि वैश्विक सीवीड बाजार में भारत की हिस्सेदारी भी बढ़ा रहा है।
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