मिट्टी की उर्वरता (Soil Fertility) कृषि के लिए बेहद जरूरी है। यह पौधों की अच्छी वृद्धि और अधिक उत्पादन में मदद करती है। मिट्टी न सिर्फ पौधों को पोषक तत्व देती है, बल्कि पानी बचाने, जड़ों को सहारा देने और उसमें रहने वाले जीवों के लिए घर का काम भी करती है। बढ़ती आबादी और खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना आज की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है।
मिट्टी की उर्वरता का मतलब है उसमें मौजूद पोषक तत्व, जैविक पदार्थ और उसकी संरचना। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम और सल्फर जैसे तत्व फसल के लिए जरूरी होते हैं। इसके अलावा, जिंक, बोरॉन और आयरन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व भी पौधों की सेहत के लिए बहुत अहम हैं। यह सभी तत्व मिट्टी को उर्वरक बनाने में सहायता करते है। मिट्टी का pH स्तर और उसमें पानी रोकने की क्षमता भी उर्वरता पर असर डालते हैं।
भारत में अलग-अलग तरह की मिट्टी पाई जाती है जैसे काली मिट्टी, लाल मिट्टी, दोमट मिट्टी, बलुई मिट्टी और जलोढ़ मिट्टी। हर मिट्टी की अपनी खासियत होती है। जैसे काली मिट्टी कपास के लिए सबसे अच्छी है, तो जलोढ़ मिट्टी चावल और गेहूं के लिए अच्छी मानी जाती है। लेकिन, खेतों में रसायनिक खादों का ज्यादा इस्तेमाल और पानी के खराब प्रबंधन के कारण भारत की मिट्टी कमजोर हो रही है।
मिट्टी की उर्वरता में कमी के कई कारण हैं। इनमें सबसे प्रमुख कारण है रसायनिक खादों का अत्यधिक इस्तेमाल। यह मिट्टी के प्राकृतिक पोषक तत्वों को खत्म कर देता है और उसकी गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाता है। पानी की अधिक सिंचाई से मिट्टी की संरचना में बदलाव आता है। इससे मिट्टी सख्त हो जाती है और उसमें नमी और पोषक तत्वों को रोकने की क्षमता कम हो जाती है।
फसल चक्र (Crop Rotation) न अपनाना भी मिट्टी की उर्वरता घटने का एक बड़ा कारण है। एक ही तरह की फसल बार-बार उगाने से मिट्टी में मौजूद कुछ खास पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। जैविक खादों का कम इस्तेमाल भी मिट्टी की सेहत को कमजोर करता है। जैविक खादें मिट्टी को जरूरी पोषक तत्व प्रदान करती हैं और उसकी संरचना को बेहतर बनाती हैं। इसके अलावा, जंगलों की कटाई और मिट्टी कटाव भी उर्वरता को नुकसान पहुंचाते हैं। पेड़-पौधों की जड़े मिट्टी को पकड़ कर रखते हैं और मिट्टी को बहने से बचाते हैं।
मिट्टी की उर्वरता कम होने का असर: मिट्टी कमजोर हो जाने का सीधा असर फसल उत्पादन पर पड़ता है। पोषक तत्वों की कमी से पौधों की वृद्धि रुक जाती है और उनका उत्पादन घट जाता है। इससे किसानों की आमदनी पर बुरा असर पड़ता है और देश की खाद्य सुरक्षा भी खतरे में आ जाती है। इसके अलावा मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों की संख्या कम होने से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है।
मिट्टी की उर्वरता को कैसे बचाएं?
मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए जैविक खादों का इस्तेमाल बेहद जरूरी है। जैसे गोबर की खाद, वर्मी-कम्पोस्ट और हरी खाद का उपयोग करके मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। यह खाद न केवल मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारती हैं बल्कि फसल की पैदावार को भी बढ़ाती हैं।
सरकार की योजनाएँ: भारत सरकार ने मिट्टी को बचाने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं। ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ (Soil Health Card Scheme) के जरिए किसानों को उनकी मिट्टी की स्थिति की जानकारी दी जाती है। परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) से जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
मिट्टी बचाने का वैश्विक प्रयास: मिट्टी की समस्या केवल भारत की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और बढ़ती जनसंख्या ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। संयुक्त राष्ट्र ने अपने सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDGs) में मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने को प्राथमिकता दी है। मिट्टी की उर्वरता को बचाना हमारे लिए बेहद जरूरी है। यह पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। जैविक खेती, जल संरक्षण और सही प्रबंधन से हम मिट्टी की सेहत को सुधार सकते हैं।
रसायनों के उपयोग से मिट्टी में घट रहा जैविक कार्बन: देश में रसायनों के अधाधुंध प्रयोगों व कीट नियंत्रकों के उपयोग से भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा लगातार घटती जा रही है। देश में वर्ष 2016 में 6 करोड़ के लगभग हुए मिट्टी जांच परीक्षणों की रिपोट में मिट्टी में उपलब्ध जैविक कार्बन की मात्रा केवल 0.05 प्रतिशत पाई गई थी। उपजाऊ मिट्टी में जैविक कार्बन की न्यूनतम मात्रा 0.90 प्रतिशत आवश्यक है। भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय जैविक प्रमुख हुकमचंद पाटीदार ने जोधपुर प्रवास के दौरान किसानों के लिये जैविक कृषि की आवश्यकता व देश में जैविक कृषि की स्थिति व भविष्य पर चर्चा की।
हुकमचंद पाटीदार ने कहा कि मिट्टी में 0.01 से 0.02 प्रतिशत की कमी भूमि को पूरी तरह से बंजर कर रही है। अमरीका की एक एग्रीकल्चर संस्था ने बताया कि भारत में वर्तमान कृषि पद्धति को नहीं सुधारा गया तो 2030 तक मिट्टी में जैविक कार्बन के स्तर में कमी आ सकती है, जो बीजों के अंकुरण में अक्षम होगी व भूमि बंजर होने की संभावना बढ़ जायेगी।
ये भी पढें...