किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग ने जिले के किसानों को खेत की मिट्टी का परीक्षण कराने की सलाह दी है। विभाग के अनुसार, अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए मिट्टी की गुणवत्ता और स्वास्थ्य को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है, और मृदा परीक्षण इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
उप संचालक कृषि डॉ. एस.के. निगम ने बताया कि मृदा परीक्षण का मुख्य उद्देश्य मिट्टी की गुणवत्ता का मूल्यांकन करना और उसमें उपस्थित पोषक तत्वों की मात्रा का पता लगाना है। इससे किसानों को यह जानने में मदद मिलती है कि उनकी भूमि की वर्तमान स्थिति क्या है और उसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है।
डॉ. निगम के अनुसार, मृदा परीक्षण की शुरुआत मिट्टी का सही तरीके से नमूना लेने से होती है। किसान स्वयं नमूना ले सकते हैं या अपने क्षेत्र के कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। खेत के विभिन्न हिस्सों से नमूने लेने चाहिए ताकि पूरे खेत की सटीक स्थिति का आकलन किया जा सके। नमूना एकत्र करने की उचित विधि अपनाने से परीक्षण के परिणाम अधिक सटीक आते हैं।
नमूने मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में भेजे जाते हैं, जहां मिट्टी का पीएच मान, जैविक कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम और सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा जांची जाती है। आधुनिक उपकरणों और तकनीकों से लैस इन प्रयोगशालाओं में किए गए परीक्षण के नतीजे विश्वसनीय होते हैं। इन नतीजों के आधार पर किसान को बताया जाता है कि उसकी मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्वों की कमी है और उसे कैसे पूरा किया जा सकता है।
अम्लीय मृदा सुधार के लिए अपनाएं यह उपाय:
डॉ. निगम ने बताया कि परीक्षण के दौरान कई बार मिट्टी अम्लीय पाई जाती है, यानी उसका पीएच मान 6.5 से कम होता है। ऐसी मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता कम हो जाती है, जिससे फसल की उपज प्रभावित होती है।
उर्वरता बढ़ाने की दिशा में अहम कदम: मृदा परीक्षण के आधार पर किसान अपनी भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए सही उपाय अपना सकते हैं, जिससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि मिट्टी की दीर्घकालीन उत्पादकता भी बनी रहेगी। कृषि विभाग ने किसानों से अपील की है कि वे समय रहते मृदा परीक्षण कराएं और वैज्ञानिक सलाह के अनुसार खेती करें।
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