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चना रबी की प्रमुख फसल है तथा जिसका भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बडे पैमाने पर किया जाता है। दलहन के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में चने की महत्वपूर्ण भूमिका है। चने में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा पाया जाता है और इसमें कैल्शियम व आयरन की अच्छी मात्रा पाई जाती है। चने का उपयोग औषधि के रूप में जैसे खून साफ करने व अन्य बीमारियों के लिये भी किया जाता है। चने का उत्पादन कुल दलहन फसलों के उत्पादन का लगभग 45 प्रतिशत होता है।
चना एक रबी सीजन की फसल है, जो कम बारिश वाले क्षेत्र में अधिक उपज और गुणवत्ता बेहतर होती है। चने की फसल 24 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त है। यह फसल नमी के प्रति संवेदनशील है। नमी से फसल की उपज में कमी आती है। चना की फसल के लिए दोमट से लेकर गहरी काली मृदा अनुकूल होती है। इसके लिए रेतीली उत्तम जल निकास वाली मृदा महत्वपुर्ण है। आदर्श पीएच 6.0 से 7.5 होना चाहिए।
चने के लिये जलमांग water demand for gram: चने की फसल के लिए 600 से 900 मिली पानी की आवश्यकता होती है। फसल के कई चरणों में जैसे बुवाई , पुष्पण और बीज बनने के समय में सिंचाई से नुकसान होता है।
जूताई मिट्टी की प्रकृति के अनुसार 1 से 2 बार जुताई कर सकते है। खेत में गोबर खाद 2 से 3 टन और कंपोस्ट बैक्टरिया मिलाए। मिश्रण को मिट्टी लगभग दो सप्ताह खुला रखे ताकि इसका अपघटन ठीक से हो सके। खेत में रोटावेटर चलाए जिससे की खाद भूमि में मिल जाए व भूमि समतल हो जाए।
चने की बुवाई कब करें: चना की बुआई अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह तक कर दें। चने की बुआई धान की फसल काटने के बाद भी की जाती है, ऐसी स्थिति में बुआई नवंबर-दिसंबर के मध्य तक अवश्य कर लें।
चने की बुवाई कैसे करें: चने की बुवाई नमी में सीडड्रिल से करना चाहिए एवं खेत में नमी कम होने पर बीज को नमी के सम्पर्क में लाने के लिए गहरी बुआई कर पाटा लगायें। पौध संख्या 25 से 30 प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से रख पंक्तियों के बीच की दूरी 25-30 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 8-10 से.मी. रखें। सिंचित अवस्था में काबुली चने में कंडों के बीच की दूरी करीब 40-45 से.मी. रखें।
चने की सिंचाई: चने की खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है। चने की फसल लगभग तैयार होने तक 2 से 3 बार सिंचाई करनी होती है, क्योंकि चने की फसल की बुवाई करने के 45 दिनों बाद पानी की जरूरत पड़ती है या फिर फसल बोने के 70 दिनों बाद सिंचाई करें, लेकिन चने की बिजाई करते समय एक बार पहले अच्छे से जमीन में सिंचाई करने की आवश्यकता होती है फव्वारा विधि से चने की फसल में एक बार में कम कम 3 घंटे तक पानी देना चाहिए।
चने की फसल में खाद एवं उर्वरक: चने की फसल में उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही किया जाना चाहिए। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 20-25 किग्रा नाइट्रोजन, 50-60 किग्रा फास्फोरस, 20 किग्रा पोटाश एवं 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें।
प्रमुख रोग एवं नियंत्रण; उकठा या उगरा रोग- उकठा चना फसल का प्रमुख रोग है। उकठा के लक्षण बुआई के 30 दिन से फली लगने तक दिखाई देते हैं। पौधों का झुककर मुरझाना, विभाजित जड़ में भूरी काली धारियां दिखाई देने लगती हैं।
नियंत्रण – चना की बुवाई अक्टूबर माह के अंत से नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में करें। उकठा रोगरोधी जातियां लगाएं जैसे देशी चना- जे.जी. 315, जे.जी. 322, जे.जी. 74, जे.जी. 130, काबुली – जे.जी.के. 1, जे.जी. के. की बुवाई करें।
प्रमुख कीट एवं नियंत्रण: चना फलीभेदक :– चने की फसल फली भेदक कीट चने की उत्पादकता को 20-30 प्रतिशत हानि पहुंचाता है। चना फलीभेदक के अंडे लगभग गोल, पीले रंग के मोती की तरह एक-एक करके पत्तियों पर बिखरे रहते हैं और ये अंडे कोमल पत्तियों को खुरचकर खाते हैं। यह सुंडी फली में छेद करके सारा दाना खा जाती है।
कीट प्रबंधन: