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Organic farming: आईए जानते हैं मिलेनियर फॉर्मर के बारे में, जो जैविक खेती से दे रहे रोजगार और बन रहे सफलता की मिसाल

जैविक खेती किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर
जैविक खेती किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर

रसायनिक खेती से नाता तोड़कर शुरू की जैविक खेती, मध्यप्रदेश सरकार के पोर्टल से मिली जानकारी के अनुसार, छिंदवाड़ा जिले के खजरी गांव के श्री राहुल कुमार वसूले एक प्रगतिशील किसान हैं, जिन्होंने जैविक खेती के क्षेत्र में नई क्रांति ला दी है। परिवार के स्वास्थ्य पर रसायनिक खेती के दुष्प्रभावों को देखते हुए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और जैविक व प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाया। उन्होंने देशभर के विभिन्न संस्थानों और वैज्ञानिकों से जैविक खेती के लिए मार्गदर्शन भी लिया व राज्य सरकार द्वारा मदद की गई है। उन्होंने जीवामृत, घनजीवामृत, केंचुआ खाद और नीम जैसे जैविक उत्पाद तैयार करना सीखा।

मिलेनियर फॉर्मर ऑफ इंडिया का सम्मान Honor of Millionaire Farmer of India:

श्री राहुल वसूले को 1 से 3 दिसंबर 2024 तक पूसा, नई दिल्ली में आयोजित समारोह में 'मिलेनियर फॉर्मर ऑफ इंडिया 2024' के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें 2022 में आगरा में जैविक इंडिया अवार्ड और 2023 में मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में गौ आधारित जैविक कृषि अवार्ड से भी नवाजा गया। उनके पास 10 एकड़ जमीन है, जहां वे गेहूं, चना ज्वार, बाजरा, मूंग, रागी और सब्जियों की जैविक खेती करते हैं। जैविक खाद और प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल कर उन्होंने अपनी उपज को बेहतर बनाया।

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जैविक खेती से दे रहे रोजगार के अवसर Employment opportunities provided by organic farming:

श्री राहुल ने रसायनमुक्त नवरत्न आटा तैयार करने के लिए जैविक प्र-संस्करण यूनिट स्थापित की, जिसमें ज्वार, बाजरा, रागी, काला गेहूं और अन्य अनाज शामिल हैं। इस प्र-संस्करण यूनिट में 50 से अधिक जरूरतमंद लोगों को रोजगार दे रहे हैं। पहले 15 लाख रुपये के पैकेज पर नौकरी करने वाले राहुल अब जैविक खेती से सालाना 1.5 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर कमा रहे हैं। उनके बनाये गये उत्पाद पुणे, मुंबई, गुरुग्राम और नोएडा जैसे बड़े शहरों तक पहुंच रहे हैं।

आधुनिक तकनीकों से किसान बना प्रेरणा स्रोत: छिंदवाड़ा जिले के झामटा गांव के किसान शरद नागरे ने भी आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाकर अपनी किसानी को नई दिशा दी। शुरुआत में वे पारंपरिक खेती करते थे और आधुनिक उपकरणों जैसे प्लाऊ, हार्वेस्टर और मल्चिंग विधियों से अछूते थे। उद्यानिकी विभाग ने उन्हें टमाटर, बैंगन, लहसुन, खीरा और लौकी जैसी फसलों की खेती के फायदे बताए और प्रशिक्षण दिया।

उन्नत तकनीकों से बढ़ी पैदावार और आय: शरद नागरे ने अपने 4 हेक्टेयर खेत में नई सिंचाई तकनीक, उन्नत बीज और खाद का इस्तेमाल शुरू किया। मल्चिंग सुविधा के लिए उन्हें 16 हजार रुपये का अनुदान मिला। उनकी मेहनत रंग लाई और उद्यानिकी फसलों की पैदावार बढ़ने लगी। उनके उत्पादों को बाजार में बेहतर कीमत मिलने लगी, जिससे उनकी सालाना आय 10 लाख रुपये से बढ़कर 15 लाख रुपये तक पहुंच गई।
ये दोनों किसान न केवल खुद आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि अन्य किसानों और जरूरतमंदों के लिए रोजगार और प्रेरणा के स्रोत भी हैं।

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