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पराली जलाना पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों को है नुकसान,पराली ना जलाएं पर्यावरण और स्वास्थ्य बचाएं, पराली जलाना भारतीय कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसका प्रभाव पर्यावरण और किसानों दोनों पर पड़ता है। रबी और खरीफ फसलों की कटाई के बाद खेतों में बचे हुए तने और अवशेष को जलाने से वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ता है।
जब किसान पराली को जलाते हैं तो धुंए में उपस्थित 70 प्रतिशत कार्बन डाईआक्साईड, 7 प्रतिशत कार्बन मोनोआक्साईड, 0.66 मीथेन व 2.09 प्रतिशत नाईट्रक आक्साईड आदि कई तरह की गैस निकलती हैं, जो कि वातावरण में कई तरह के बदलाव लाने का कारण बनती हैं। पराली को आग लगाने से दूर-दूर तक धुंआ फैलता है, जिससे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पडता है और अस्थमा रोगियों को असहनीय कष्ट होता है। धुंए के कारण किसानों के मित्र कीडे एवं पक्षी विलुप्त हो गए हैं जो कि खेती-किसानी में मददगार होते हैं तथा पर्यावरण संतुलन बनाए रखते हैं। पराली जलाने के परिणामस्वरूप खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाने में सहायक जैविक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों ने पराली को खेती में ही संभाल करने के लिये विभिन्न प्रकार की मशीनों का ट्रायल करके पराली को खेतों में उपयोग करने की सिफारिश की है। इन मशीनों को खरीदने के लिये भारत सरकार व पंजाब सरकारी किसानों को अनुदान भी दे रही है। किसानों को पराली प्रबंधन जैसे पराली को खेतों में मिलाकर जैविक खाद बनाना, पराली से बायोगैस या बिजली उत्पादन कर पर्यावरण अनुकूल उपाय अपनाना आदि। ये न केवल पर्यावरण की सुरक्षा करेंगे बल्कि किसानों को आर्थिक रूप से भी लाभ पहुंचाएंगे।
वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि धान-गेहूं के फसली चक्र में यदि धान के पराली को खेतों में ही रहने दिया जाए तो गेहूं की फसल में बढोतरी होती है, जमीन की सेहत अच्छी होती है और खाद की खपत भी कम होती है। विभिन्न मशीनें जैसे हैप्पी सीडर, सुपर एस.एस.एस, चोपर, मल्चर, उल्टा हल इत्यादि मशीनों से पराली को खेतों में ही उपयोग करने का समाधान निकाल सकते हैं। धान की कटाई के बाद पराली को बिना खेतों से निकाले, गेहूं की बुवाई हैप्पी सीडर मशीन द्वारा की जा सकती है। इस मशीन से धान की पराली को बिना जलाए ही गेहूं की बुवाई हो जाती है। चोपर चलाने के बाद काटी हुई पराली वाले खेत को हल्का पानी लगा के रोटरी पैडलर (रोटावेटर) की मदद से इस पराली को बड़ी आसानी से जमीन में मिलाया जा सकता है।
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