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गन्ना भारत में सर्वाधिक रूप से उगाई जाने वाली फसल है। यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाखों से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। भारत में गन्ने की खेती व्यापक रूप से की जाती है। मध्यप्रदेश में प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बैतूल, दतिया व बुरहानपुर जिले हैं। वर्तमान समय में कुल गन्ना उत्पादन का 50 प्रतिशत रकवा नरसिंहपुर जिले में है।
गन्ना देश में मुख्य रूप से उगाया जाता है, जिसकी खेती प्रतिवर्ष 30-35 लाख हेक्टेयर भूमि में होती है। देश में गन्ने की पैदावार 65.4 टन प्रति हेक्टेयर है, जो बहुत कम है। गन्ने से चीनी व गुड़ का उत्पादन किया जाता है। गन्ने के जूस की मांग बाजारों अधिक होती है जिससे छोटे से छोटे व्यापारी गन्ने की पेराई करके गर्मियों में अच्छा मुनाफा कमाते हैं।
गन्ने की बुवाई लाइन विधि द्वारा करनी चाहिए। लाइन की दूरी खेत, मौसम एवं समय को ध्यान में रखते हुये अलग-अलग रखी जाती है। बसंत और शरद ऋतु में बुवाई 90 सेंटीमीटर तथा देर से बुवाई होने पर 60 सेंटीमीटर लाइन से लाइन की दूरी रखनी चाहिए। पैंडे से पैंडे की दूरी 20-25 सेंटीमीटर दो आंख वाले गन्ने में रखी जाती है।
गन्ने की खेती काली चिकनी मिट्टी तथा दोमट मिट्टी जिसमें सिंचाई की अच्छी जल का निकासी हो सर्वोत्तम है। गन्ने का पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच हो। गन्ने के लिए सर्वोत्तम होती है। गन्ने की बुवाई वर्षा में दो बार किया जा सकता है। शरद ऋतु में गन्ने की बुवाई अक्टूबर-नवम्बर तथा बसंत में फरवरी-मार्च में बुवाई करते हैं।
खेत को अप्रैल से 15 मई के पूर्व एक गहरी जुताई करें। इसके बाद 2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर, से जुताई कर रोटावेटर व पाटा चलाकर खेत को भुरभुरा, बना लें फिर खेत को समतल एवं खरपतवार रहित कर लें। दोमट भूमि में गन्ने की खेती की जाती है। मृदा नमी में कमी हो तो बुवाई से पहले पलेवा करके किया जा सकता है। खेत में हरी खाद देने की स्थिति में खाद को सड़ने के लिये पर्याप्त समय देना चाहिये।
गन्ने के साथ अन्त फसल: गन्ना के साथ अन्तः खेती के लिये उन्हीं फसलों का चुनाव करना चाहिये जिनमें छाया से गन्ना फसल पर विपरीत प्रभाव न पड़े। फसलों और उन्नत चयन से कृषि तकनीकी से ही अन्तःखेती फसल से अधिक से अधिक लाभ लिया जा सकता है। मटर, आलू, प्याज, लहसुन, लाही, राई, गेहॅं, मसूर आदि शरदऋतु में गन्ने के साथ तथा लोबिया, उर्द, मूंग और भिण्डी आदि बसन्तकालीन गन्ने के साथ अन्तः फसल के रूप में बोई जा सकती है। शरदकालीन गन्ने दो फसलों जैसे-आलू-गन्ना, मटर-गन्ना, गेहूं-गन्ना और लाही गन्ना से अधिक लाभ पाया गया है।
गन्ने की उन्नतशील प्रजाति
उत्तर प्रदेश के विभिन्न भागों में गन्ना फसल को 1500 से 1750 मि०ली० पानी की जरूरत होती है जो लगभग 50 प्रतिशत वर्षा से प्राप्त होता है। नमी की कमी होने पर बुवाई के एक माह बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए जिससे जमाव अच्छा होता है। ग्रीष्म ऋतु में 20-25 दिनों के अन्तर पर सिंचाई करते रहना चाहिये। 20 दिन तक वर्षा न होने पर एक सिंचाई करना चाहिए। सूखी पत्ती बिछाकर नमी को सुरक्षित रखने से उपज में अच्छी वृद्धि होती है।
गन्ना फसल ही क्यों लेना चाहिए: गन्ना एक प्रमुख बहुवर्षीय फसल है जो साल में 1,50,000 रूपये प्रति हेक्टेयर से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। फसल चक्रों जैसे मक्का-गेंहू या धान-गेंहू, सोयाबीन-गेंहू की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त होता है। जोखिम भरी फसल है जिस पर रोग, कीट का असर कम होता है। गन्ना के साथ अन्तवर्तीय फसल लगाकर 3-4 माह में ही लागत मूल्य प्राप्त किया जा सकता है। अंकुरण अच्छा होने से बीज कम लगता है और कल्ले अधिक फूटते हैं। फसल के जल्दी पकने से कारखानों में जल्दी पिराई शुरू कर सकते हैं।
गन्ने की फसल में जलवायु तथा बीज की मात्रा: गन्ने की फसल 30-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है। वातावरण के शुष्क होने पर गन्ने की बुवाई करनी चाहिए। कीट रहित व रोग मुक्त स्वस्थ्य बीज और सही खेत का चुनाव करना चाहिए। गन्ने की देर से बुवाई करने पर डेढ़ गुना बीज की जरूरत होती है दो आँख वाले पैंड 56000 प्रति हेक्टेयर लगते हैं। बाविस्टीन की 112 ग्राम प्रति हैक्टर कि दर से 112 लीटर पानी में घोलकर गन्ने के टुकड़ों पर छिड़काव करना चाहिए।
गन्ने की फसल में खाद और उर्वरक: गन्ने की अच्छी पैदावार के लिये गोबर की खाद का प्रयोग करें। 150 किलोग्राम नाइट्रोजन 40 किलोग्राम पोटाष तथा 80 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टर का प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन को 1/3 भाग मात्रा और पोटाश एवं फास्फोरस की पूरी मात्रा को डालते हैं। जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन को अप्रैल-मई में दो हिस्सों में दो बार डालना चाहिए।
गन्ने की फसल में लगने वाले रोग व नियंत्रण: गन्ने की खेती करते समय अनेक रोग लगने की संभवना होती है जिनमें काना रोग, उकठा रोग, पत्ती की लाल धरी, सडन रोग, पर्णदाह रोग, कन्डुआ रोग आदि हैं।
नियंत्रण:
गन्ने फसल की कटाई: गन्ना पूरी तरह से परिपक्व या हल्का पीला पड़ने लगे तब अप्रैल माह तक कटाई करनी चाहिए। कटाई के बाद गन्ने को सीधे शुगर फक्ट्री में भेज देना चाहिए। उतने ही गन्ने की कटाई करनी चाहिए जितने शुगर फैक्ट्री में गन्ने भेजे जाना है जिससे गुड़ बनाया जा सके और गन्ने का कटाई पर नुकसान न हो।