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मक्के को भारत में ही नहीं पूरे विश्व में खाद्यान्न फसलों की रानी कहा जाता है क्योंकि इसकी उत्पादन क्षमता अन्य फसलों से अधिक है। मक्का का उत्पादन की दृष्टि से खाद्यान्न फसलों में तीसरा स्थान है। मक्का का उपयोग चारे एवं दाने के रूप में किया जाता है। मक्के की प्रजाति बेबीकार्न को सब्जी के रूप में उपयोग किया जा रहा है तथा हरे भुट्टों को भुनकर खाने में इसका स्वाद लिया जाता है। मक्का मुख्य रूप से बरसात और सर्दियों के मौसम में उगाई जाती है।
मक्का एक पौष्टिक भोजन है जो दानों के रूप में भुनकर खाया जाता है। मक्के का निर्माण पोल्ट्री पशु फीड ग्लूकोज स्टार्च और मकई फ्लेक्स के लिये किया जाता है। सर्दियों के मौसम में मक्के की रोटी के रूप में खाया जाता है। भारत में लगभग 80 प्रति मक्का की खेती खरीफ मौसम में की जाती है। अमेरिका चीन ब्राजील एवं मैक्सिको के बाद भारत का मक्का उत्पादन में पाँचवा स्थान है। मक्का भारत में उत्तर प्रदेश राजस्थान कर्नाटक हिमाचल प्रदेश आंध्रप्रदेश जम्मू कश्मीर और उत्तर पूर्वी राज्यों में मक्का उगाया जाता है। भारत में मक्का लगभग 70 प्रतिशत तनावग्रस्त परिस्थितियों में उगाई जाती है। मक्के से 1000 से अधिक उत्पाद तैयार किया जाते हैं। मक्के को विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जाता है।
मक्के की खेती 15 जून के बाद शुरू कर देनी चाहिए। एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर से करवाना चाहिए। गर्मियों में ही जुताई करने से अधिक लाभ तथा उपज अधिक होती है। खेत में नमी बनाये रखने के लिये कम समय में जुताई करके तुरन्त पाटा लगाना चाहिए। जुताई करने से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। डिस्क हैरो से भी जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें। जहां भूमि में नमकीन पानी की समस्या है वहां मक्का की बीजाई मेढ़ के ऊपर के बजाय मेढ़ के किनारों पर करना चाहिए। मक्के की बुवाई पूर्वी- पश्चिमी मेड़ों के दक्षिणी भाग में करना चाहिए। कपिंग एन्कलाइंड प्लेट या रोलर टाइप के सीट मीटरिंग विधि उपयुक्त पाई गई है। बुवाई करने में प्लांटर का उपयोग करना चाहिए जिससे बीज एवं उर्वरकों को उचित स्थान पर डालने में सहायता मिलती है। चारे के लिये बुवाई सीडड्रिल विधि द्वारा करना चाहिए। बुवाई उचित दूरी पर करना चाहिए।
मक्के की बुवाई खरीफ में जून के अन्तिम सप्ताह में और जुलाई के पहले सप्ताह तक तथा रबी में अक्टूबर के द्वितीय पखवाडे में एवं जायद में मार्च के द्वितीय पखवाडे़ में बुवाई कर सकते हैं। मक्के की बुवाई पक्तियों में करनी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 50-60 और पौधे से पौधे की दूरी 25-30 सेमी. पर करें।
फर्ब विधि से मक्के की बुवाई: इस विधि से मक्के की बुवाई लाइनों में की जाती है। इस तकनीकि में मक्के को ट्रेक्टर रीजर-कम ड्रिल से मेंड़ों पर एक पंक्ति में बुवाई करें। इस विधि में खाद एवं पानी की बचत साथ ही निराई-गुड़ाई कम करना पड़ता है। यह विधि बीज उत्पादन के लिये भी मक्का की खेती की जा रही है। इसका मुख्य उद्येश्य अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराना है। इसमें मक्के की बुवाई पूर्व से पश्चिम दिशा के उत्तरी भाग में की जानी चाहिए क्योंकि सूर्य की किरणें सीधी मिट्टी पर नहीं पड़ती हैं।
मक्का की उन्नतशील प्रजातियां:
जलवायु तथा मिट्टी: मक्का की अच्छी उपज के लिये अच्छी धूप की आवश्यकता होती है। बुवाई के समय तापमान 20-25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान मक्के की बढ़वार के लिये उपयुक्त होता है। तापमान 9-10 डिग्री सेल्सियस होने पर मक्का का अंकुरण प्रभावित होता है। मक्के की खेती के लिये अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसमें हवा का संचार तथा नमीयुक्त भूमि हो जिसका पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच में सबसे उपयुक्त उगाई जाती है।
मक्के की सिंचाई: मक्के की फसल को समय-समय पर पानी देते रहना चाहिए। जब मक्का अंकुरित या बाली दिखने लगे विषेष तौर पर तब पानी देना चाहिए। बुवाई की प्रारम्भिक अवस्था से लेकर भुट्टा निकलने तक मौसम के अनुसार 4-5 सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रत्येक सिंचाई में 5-6 सेमी. जल पर्याप्त होता है। वर्षाऋतु में मक्के में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे जल जमाव न होने पाये। समतल खेतों में नालियाँ विधि द्वारा जल का निकास करना चाहिए।
मक्के की फसल में पोषण प्रबंधन: मक्के की बुवाई से पहले मिट्टी की जांच करवाना चाहिए जिससे अच्छी उपज प्राप्त की जा सके। बुवाई के 15 दिन पहले खेत में सड़ी गोबर की खाद 10-12 टन प्रति हेक्टेयर मिलानी चाहिए। और 150-160 किलोग्राम नाइट्रोजन 60-70 किलोग्राम फास्फोरस पोटश तथा जिंक का प्रयोग करना चाहिए। बुवाई के समय 10 प्रतिशत नाइट्रोजन देना चाहिए। नाइट्रोजन की मात्रा चार हिस्सों में देना चाहिए। चार पत्तियाँ आने पर 20 प्रतिशत 8 पत्तियां आने पर 30 प्रति. फूल आने के समय 30 प्रति और दानों के अंकुरण के समय 10 प्रतिशत नाइट्रोजन की मात्रा देनी चाहिए।
मक्के का महत्व तथा उपयोग: बेबीकार्न एक पौष्टिक एवं स्वादिष्ट आहार है जो हरे पत्तों से चिपकी रहने से कीटनाशकों के प्रभाव से मुक्त होती है। इसमें फास्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है साथ ही कार्बोहाइड्रेट कैल्षियम प्रोटीन लोहा व विटामिन पाये जाते हैं। मक्का आसानी से पचाया जा सकता है। मक्के की रोटी का भी स्वाद लिया जा सकता है। बेबीकार्न को पकाकर या कच्चा भी खाया जा सकता है। मक्के का उपयोग अनेक प्रकार के व्यंजन जैसे सब्जियाँ कोपता पकौडा भुजिया सलाद सूप खीर रायता अचार हलवा कैन्डी मुरब्बा जैम बर्फी आदि बनाया जाता है जिसकी मांग बाजारों में अधिक रहती है और इससे किसान अधिक मूल्य भी अर्जित कर सकते हैं।
तुड़ाई एवं उपज: जब मक्के या भुट्टों की पत्तियाँ पीली होने लगें तब मक्का की तुडाई की जा सकती है। भुट्टा तोड़ते समय ऊपर की ओर पत्तियां नहीं हटानी चाहिए। खरीफ में प्रतिदिन सिल्क आने के समय 24 घंटे के पहले भुट्टे की तुड़ाई कर लेनी चाहिए।
फसल सुरक्षा: