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दक्षिण-पश्चिम मानसून से भारत के कृषि क्षेत्र को काफी नुकसान हुआ है। इस साल दलहन और तिलहन जैसी प्रमुख फसलों के तहत बोए गए क्षेत्र में भी कमी आई है। खड़ी फसलें इससे काफी प्रभावित हुई हैं। दरअसल, देश का आधे से अधिक कृषि क्षेत्र फसल उगाने के लिए बारिश पर निर्भर करता है। इससे आगे और अधिक परेशानी हो सकती है, क्योंकि अंतर को भरने और कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए अब महंगे आयात का सहारा लेना पड़ सकता है।
कम बारिश के कारण दालों की खेती का रकबा करीब 9 फीसदी कम हो गया है, जबकि सूरजमुखी का रकबा 65 फीसदी तक गिर गया है। उड़द, मूंग और अरहर जैसी दालों का रकबा पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 5.41 लाख हेक्टेयर कम हो गया है। इसी तरह तिलहन का रकबा 3.16 लाख हेक्टेयर कम हो गया है।
इस साल राज्यों में लगभग 8.68 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र बाढ़ या भारी वर्षा से प्रभावित होने की सूचना है। खरीफ फसलों की कटाई शुरू हो गई है और आने वाले हफ्तों में कुल उत्पादन में नुकसान की सीमा स्पष्ट हो जाएगी।
जून में मानसून देरी से शुरू हुआ, जिसके बाद जुलाई में अधिक बारिश हुई, उसके बाद अगस्त में कमी हुई और फिर सितंबर में पंजाब और हरियाणा जैसे देश के कुछ हिस्सों में फिर से अधिक बारिश हुई, जिससे खड़ी फसल पर असर पड़ा। इसके चलते सब्जियों, खासकर टमाटर और प्याज की कीमतों में भारी वृद्धि हुई, जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई और घरेलू बजट बढ़ गया।
चावल, गेहूं, दालों और मसालों की बढ़ती कीमतें चिंता का कारण बनकर उभरी हैं। खुदरा मुद्रास्फीति के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि सब्जियों और खाना पकाने के तेल की कीमतों में गिरावट के कारण सितंबर में खाद्य मुद्रास्फीति घटकर 6.56 प्रतिशत हो गई है, लेकिन दालों की कीमतें 16.38 प्रतिशत बढ़ गईं, जबकि मसालों की कीमतें 23.06 प्रतिशत बढ़ गईं। अनाज की कीमतें 10.95 फीसदी बढ़ गईं।
भारत की लगभग 80 प्रतिशत बारिश दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान होती है जिससे देश के जलाशय भी भर जाते हैं। इनका उपयोग अगले कृषि मौसम के दौरान सिंचाई के लिए किया जाता है। इस साल कम बारिश के कारण, जलाशयों में पानी का भंडारण पिछले साल का लगभग 75 प्रतिशत होने की सूचना है, जो आगामी रबी सीजन में कृषि उत्पादन को प्रभावित कर सकता है।