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मूंग की फसल ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों ऋतुओं में और कम समय में दलहन फसल है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसकी जड़ों में गाठें पाई जाती है जो वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का मृदा में स्थिरीकरण एवं फसल की खेत से कटाई के समय जड़ों एवं पत्तियों के रूप में प्रति हेक्टेयर 1.5 टन जैविक पदार्थ मिट्टी में डाला जाता है जिससे जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
मध्यप्रदेश में मूंग की फसल जबलपुर, ग्वालियर, हरदा, भिण्ड, शिवपुरी, मुरेना एवं श्योपुर जिले में ज्यादा उगाया जाता है। उन्नत प्रजातियों एवं उत्पादन की उन्नत तकनीक से उपज को और अधिक बढ़ा सकते हैं। मूंग के दाने का प्रयोग दाल के लिये किया जाता है। मध्यप्रदेश में औसत उत्पादकता लगभग 350 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है जो कम है।
मूंग की खेती 2 कतारों के मध्य की दूरी 30 से 40 सेमी. रखनी चाहिए बीजों को 5 से 6 सेमी. गहराई पर बुवाई करनी चाहिए। मूंग के बीजों को पहले कार्बेंडाजिम से उपचारित करने के बाद ही बुवाई करनी चाहिए। मूंग की खेती करने के लिये मिट्टी पलटने वाले हल से एक बार जुताई करके वर्षा प्रारम्भ होते ही 2 से 3 बार कल्टीवेटर से जुताई करनी चाहिए तथा खरपतवार रहित पाटा चला कर खेत को समतल कर लेना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में मूंग की खेती के लिये रबी फसलों के कटने के तुरन्त बाद खेत की जुताई करके 4-5 दिन छोड़कर पलेवा करना चाहिए। इसके बाद 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर द्वारा पाटा लगाकर खेत को समतल करना चाहिए। इससे भूमि में नमी संरक्षित रहती है जिससे बीजों का अंकुरण अच्छा मिलता है।
जायद मूंग की बुवाई उस क्षेत्र में करे जहां सिंचाई की सुविधा हो वहां रबी फसलों की कटाई के बाद करना चाहिए। खरीफ के मौसम में मूंग की बुवाई आने पर जून के दूसरे पखवाडे से जुलाई के बीच करनी चाहिए। बुवाई में देरी होने पर फूल आते समय तापमान ज्यादा होने के कारण मूंग में फलियां कम बनती हैं इससे उपज भी प्रभावित होती है।
मूंग की खेती के लिये नम और गर्म जलवायु उपयुक्त होती है। मूंग की खेती वर्षा ऋतु में की जाती है। इसकी अच्छी वृद्धि और विकास के लिये 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल पाया जाता है। मूंग के लिये 80-90 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त पाये जाते हैं। मूंग के पकने के समय साफ मौसम और 60 प्रतिशत आर्दता होना चाहिए। सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में इसकी खेती कर सकते हैं। मूंग की खेती के लिये अच्छी जल निकासी वाली बुलई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम उपयुक्त है। मिट्टी का पी.एच. मान 7.0 से 7.5 के बीच सर्वोत्तम है।
वर्षा ऋतु में मूंग की फसल में सिंचाई की जरूरत कम पड़ती है। इस मौसम में एक वर्षा के बाद दूसरी वर्षा होने के बीच ज्यादा अंतराल होने पर तथा नमी की कमी होने पर फलियाँ बनते समय एक हल्की सिंचाई आवष्यक होती है। ग्राष्म एवं बसंत ऋतु में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। मूंग पकने के 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देना चाहिए। अधिक वर्षा होने पर और खेत में जल भराव होने पर पानी को खेत से निकालते रहना चाहिए।
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मूंग की उन्नत प्रजातियां : नरेंद्र मूंग1, जवाहर मूंग 45, पंत मूंग 2, एच.यू.एम. 6, सुनैना, टाम्बे जवाहर मूग-3, पी.डी.एम. – 11, पूसा विशाल, के-851 आदि।
बीज की मात्रा: गर्मी के समय मूंग के बीज 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर करनी चाहिए और बुवाई कतारों में 20--25 सेमी. की दूरी पर करनी चाहिए। खरीफ ऋतु में 12 से 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। बुवाई कतारों में 30 से 40 सेमी. दूरी पर रखनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक: मूंग एक दलहन फसल है। इसमें 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 20 किलोग्राम पोटाश की मात्रा प्रति हेक्टेयर बुवाई के वक्त देना चाहिए। सल्फर की कमी वाले क्षेत्रों में गंधकयुक्त उर्वरक 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में डालना चाहिए।
खरपतवार व निराई गुड़ाई: खरीफ मौसम में फसलों में सकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे- दूब, घास, और चैडी पत्ती वाले पत्थरचट्टा महकुआ हजारदाना, महकुआ, सफेद मुर्ग, लहसुआ तथा मोथा आदि प्रकार के खरपतवार मिलते हैं। खरतपतवार मूंग में 25-30 दिनों तक रहती है। इसकी निराई-गुड़ाई 15-20 दिनो पर तथा द्वितीय 35-40 दिनो पर करना चाहिए। घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को रासायनिक विधि द्वारा खत्म करने के लिये फ्लूक्लोरिलिन 45 ईसी की 1.5 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई से पहले खेत में छिड़काव करना चाहिए।
मूंग के कीट तथा प्रबंधन: