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कई गुणों से युक्त हल्दी की खेती कई किसान करते हैं. घर से लेकर कंपनियों तक में बिकने वाली यह हल्दी अच्छे दामों में बिकती है. वहीं हल्दी की खेती एवं निर्यात में भारत विश्व में पहले स्थान पर है. यह फसल गुणों से भरपूर होती है. हल्दी की खेती आसानी से की जा सकती है. कम लागत और कम तकनीक को अपनाकर इससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती हल्दी को रोगों से बचाने की होती है. किसान आमतौ पर हल्दी के दो प्रमुख रोगों से उसे बचाकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
ऐसे तो तो हल्दी पर कई रोग और कीट लगते हैं लेकिन इनमें सबसे खतरनाक थ्रिप्स कीट और प्रकंद विगलन रोग हैं. अगर हल्दी की फसल में यह रोग लग जाए तो किसानों को उपज का 50 से 60 प्रतिशत तक नुकसान होता है. थ्रिप्स कीट बहुत तेजी से फैलने वाले रोगों में से एक है. समय रहते अगर इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो फसल पूरी तरह नष्ट हो सकती है. बदलते हुए मौसम को देखते हुए हल्दी की फसल लेने वाले किसानों के लिए हल्दी की फसल में थ्रिप्स कीट का नियंत्रण करना एक चुनौती बनी हुई है.
इस रोग के संपर्क में आने से छोटे लाल, काले और उजले रंग के कीड़े पत्तियों के रस को चूसते हैं और पत्तियों को मोड़कर पाईपनुमा बना देते हैं. इससे बचाव के लिये डाईमिथोएट का 15 मि.ली. या कार्बाराईल का 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर तीन छिड़काव करें.
हल्दी में इस रोग के कारण पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं और जमीन के उपट का तना गल जाता है भूमि के भीतर का प्रकंद भी सड़कर गोबर की खाद की तरह हो जाता है. देखा गया है कि यह बीमारी जल जमाव वाले क्षेत्रों में अधिक होती है. इससे बचाव के लिए इंडोफिल एम 45 का 2.5 ग्राम एवं वेभिस्टीन का 1 ग्राम मिश्रण बनाकर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर बीज उपचारित कर लगाएं.