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किसानों के सामने इस ठंड के मौसम में अपने पशुओं को पौष्टिक चारा देने में समस्या आती है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के किसानों ने नए चारे की खेती शुरू की है. प्रदेश के कई किसान इन दिनों एजोला फर्न की खेती कर रहे हैं. वे अपने पशुओं को यही खिला रहे हैं. इसका फायदा यह हो रहा है कि पशुओं में सभी जरूरी पोषक तत्व भी पहुंच रहे हैं और उनका विकास भी हो रहा है. इस चारे में 25 प्रतिशत से अधिक प्रोटीन पाया गया है, जो मवेशियों के लिए हर तरह से लाभकारी है. ऐसे में अगर आप भी अपने पशुओं को ये चारा खिलाते हैं, तो इससे उन्हें काफी फायदा होगा.
विशेषज्ञों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में गंगा नदी मेरठ से लेकर बलिया तक कई गांवों से जुड़ी हुई है. जो मेरठ, बिजनौर, बुलंदशहर, कानपुर, कानपुर देहात, फतेहपुर, प्रयागराज, कोशांबी, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया से छपरा होते हुए बिहार चली जाती है. उन गांवों के लोग एजोला चारे की खेती अब बड़े पैमाने पर कर रहे है. इसकी खेती पूरे साल किया जा रही है. जहां पर पानी का रुकाव होगा, वह पर एजोला की पैदावार ज्यादा होती है.
जानकारों के अनुसार सर्दियों में एजोला सबसे अच्छा चारा माना जाता है. एजोला एक तरह की जलीय फर्न है, जो पानी की सतह पर उगता है. उन्होंने बताया कि नमी वाली जमीन पर यह जिंदा रहता है. एजोला के विकास के लिए उसे भूमि की सतह पर 5 से 10 सेंटीमीटर ऊंचे जलस्तर की जरूरत होती है. साथ ही 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान इसकी वृद्धि के लिए उपयुक्त माना जाता है. इससे जानवर बेहद पौष्टिक आहार प्राप्त करते हैं.
यह देखने को मिला है कि एजोला घास का सेवन करने वाले मवेशियों की स्वास्थ्य सभी अन्य मवेशियों की तुलना में काफी बेहतर हो गया है. इसका मुख्य कारण यह है कि अजोला में दूसरे चारे की तुलना में 25 प्रतिशत से अधिक प्रोटीन पाया जाता है. यह दूसरे किसी चारे की तुलना में बहुत अधिक है. इस चारे को गाय, भैंस, बकरी सहित सभी पशुओं को खिला सकते हैं. इससे उन्हें सभी जरूरी चीजें मिल जाती हैं.
कैसे उगाएं एजोला: एजोला चारा को किसान किसी भी खाली जगह पर पैदा कर सकते हैं. इसके लिए, सबसे पहले एक छायादार जगह पर, 60 फुट लंबी, 10 फीट चौड़ी और दो फीट गहरी क्यारी तैयार करें. इन क्यारियों में कम से कम 120 गेज की सिलपुटिन शीट लगाई जाती है. इसके बाद, क्यारी में लगभग 100 किलो उपजाऊ मिट्टी बिछाएं. उसके पश्चात, 15 लीटर पानी में 5 से 7 किलो पुराने गोबर को मिलाकर घोल बना लें. क्यारी को 500 लीटर पानी से भर दें, जिसकी गहराई 12 सेंटीमीटर से 15 सेंटीमीटर तक रखें. उसके बाद, अजोला की बुवाई शुरू करें.