विज्ञापन
पान हमारे देश में कई सदियों से खाया जाता रहा है। यही कारण है की इसकी खेती काफी लंबे समय से देश के अलग अलग हिस्सों में होती है। पान की खेती करके कई किसान अच्छा मुनाफा भी कमा लेते हैं। क्योंकि पान की मांग बाजार में पूरे साल रहती है। भारत में पान की खेती लगभग 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है। इसे नकदी फसल के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि पान की खेती करने वाले किसानों को एक चुनौती से भी जूझना पड़ता है। दरअसल, पान के पत्तो में रोग लगे की आशंका अधिक रहती है। ऐसे में इसे इन रोगों से बचाना पड़ता है। वैसे तो पान की खेती में नमी चाहिए होती है। लेकिन कई बार यही नमी कुछ रोगों को भी बढ़ावा दे देती है। इन्हीं में से एक रोग है बीघा रोग। यह पान के पत्तों को पूरे तौर पर सड़ा देता है। और किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में आइए जानते हैं की इस रोग से पान को कैसे बचाया जाए।
किसानों को सबसे पहले बीघा रोग की पहचान के बारे में जानना होगा। जानकारों के अनुसार जब पान के पत्ते में यह रोग होता है तो उसके पत्ते में काले और गोल धब्बे बन जाते हैं। नमी पाकर यह रोग काफी तेज बढ़ता है। कभी-कभी यह तने को पूरी तरह से घेर लेता है। जिससे प्रभावित लताएं गांठों से टूट जाती हैं या सूख जाती हैं। बेल की गांठें काली हो जाती हैं और पत्तियों पर अनियमित आकार के भूरे धंसे हुए आकार बन जाते हैं। समय रहते इनसे बचाव करके ही किसान अच्छी खेती कर सकते है।
अगर पान में बीघा रोग के लक्षण दिखते हैं तो किसानों को सबसे पहले पान पर डाइथेनियम-45 (0.3%) या बाविस्टिन (0.1%) का छिड़काव करना चाहिए। यह इस रोग में काफी उपयोगी पाया गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक इसके दो से तीन छिड़काव से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि पान की कलमों को रोपाई के समय और प्रबंधन के समय भी उपचार की आवश्यकता होती है। इसके लिए बुआई से पहले मिट्टी को उपचारित करने के लिए 500 पीपीएम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के साथ 50 प्रतिशत बोर्डा मिश्रण का उपयोग किया जाता है। इसके बाद बुआई से पहले भी बेलों को फंगस और बैक्टीरिया से बचाने के लिए ऊपर दिए गए मिश्रण का प्रयोग किया जाता है।