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Tomato Cultivation in Hindi: टमाटर फसल की अधिक उपज के लिये इस प्रकार करें खेती, और इनमें लगने वाले रोग तथा बचाव

टमाटर फसल की अधिक उपज के लिये इस प्रकार करें खेती
टमाटर फसल की अधिक उपज के लिये इस प्रकार करें खेती

टमाटर एक वार्षिक या छोटी जीवनकाल की संजीवनीय जड़ीदार जड़ी हुई जड़ी है और स्लेटी ग्रीन घुंघराले अनियमित पिनेट पत्तियों वाली है। फूल ऑफ़-व्हाइट होते हैं जो फल लाल या पीले रंग के होते हैं। यह एक स्व-पोलिनेटेड फसल है। प्रमुख टमाटर उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम हैं।

टमाटर फसल के लिये मिट्टी और जलवायु Soil and climate for tomato crop:

टमाटर को बालू से लेकर भारी मिट्टी तक कई प्रकार की मिट्टियों पर उगाया जा सकता है। लाल लोम मिट्टी, जिसका  पीएच 6-7 हो, को सर्वोत्तम माना जाता है। टमाटर एक गर्मी की मौसमी फसल है। नमी बनाये रखने में मल्चिंग विधि सहायक है और साथ ही पाली हाउस में भी टमाटर की उच्च प्रजाति ड्रिप इरिगेशन द्वारा 12 माह उगाई जा सकती है। 21-24°C के तापमान में सबसे अच्छे फल का रंग और गुण प्राप्त किया जा सकता है। 32°C से ऊपर का तापमान फल के उत्पन्न होने और विकास को नकारात्मक प्रभाव डालता है। पौधे बर्फ और उच्च आर्द्रता को सहन नहीं कर सकते। इसे कम से कम और मध्यम वर्षा की आवश्यकता होती है। 10°C से कम तापमान पौधे के ऊतकों को नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिससे भौतिक गतिविधियों को धीमा किया जाता है।

टमाटर के लिये नर्सरी बेड की तैयारी:

खेत में रोपाई के लिए बीजों को उठाने के लिए नर्सरी बेड पर टमाटर के बीज बोए जाते हैं। 3x6 मीटर और ऊँचाई 10-15 सेंमीटर के आकार की ऊँचाई वाली बेडें तैयार की जाती हैं। दो बेडों के बीच के लिए लगभग 70 सेंमीटर की दूरी रखी जाती है ताकि सिंचाई, खुरपीचारी आदि कार्यों को करने में सुविधा हो। बीज बरामद करने के लिए नर्सरी बेड पर छाना हुआ खाद्य गोबर और नर्म रेत डालें। भारी मिट्टियों में जल भरने की समस्या से बचाव के लिए उच्च बेडों की आवश्यकता होती है। बालूई मिट्टियों में, बिना ऊँचाई वाले बेडों में बोना जा सकता है। 

भूमि की तैयारी तथा सिंचाई land preparation and irrigation:

भूमि तैयार होने पर 0.75 मीटर चैाड़ी तथा आवश्यकता अनुसार 5 से 10 मीटर लम्बी और 15 से 20 सेटी मीटर ऊँची क्यारियाँ बना लेनी चाहिए। पौध डालने से पहले 5 किलो सड़ी गोबर की खाद प्रति क्यारी, 40 ग्राम डी.ए.पी. 10 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश तथा 5 ग्राम यूरिया प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से डालना चाहिए। बीज को 3 ग्राम फूराडान 10 ग्राम थीमेट से प्रति लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 3 से 4 दिन पहले क्यारियों में छिडकाव करने से हानिकारक कीट नष्ट हो जाते हैं। भूमि की तैयारी के समय अच्छी गुणवत्ता वाला बरामद गोबर (25 टन/हेक्टेयर) पूरी तरह से मिलाया जाता है।

टमाटर पानी के प्रयोग के लिए बहुत संवेदनशील होता है। प्रथम बार रोपण के 3-4 दिन बाद हल्की सिंचाई दी जानी चाहिए। सिंचाई के अंतराल को मिट्टी के प्रकार और वर्षा के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए, खरीफ के दौरान सिंचाई का अंतराल 7-8 दिन होना चाहिए, रबी के दौरान 10-12 दिन और गर्मियों में 5-6 दिन। टमाटर के फूलों के विकास और फलों के विकास के दौरान जलीय तनाव नहीं देना चाहिए क्योंकि यह महत्वपूर्ण अवधि होती है।

टमाटर की प्रमुख किस्में:

  1. सामान्य उन्नतशील प्रजातियाँ- हिसार अरूण पंजाब छुहारा, अर्का विकास, अर्का सौरभ, काशी अमृत, पन्त टमाटर-3, कल्यानपुर टाइप-3, आजाद टी-5, आजाद टी-6, काशी, पूसा अर्ली, काशी अनुपम इत्यादि।
  2. संकर प्रजातियाँ - इसमें दो तरह की प्रजातियाँ पाई जाती है। जैसे- रश्मी,  रूपाली, अजन्ता पूसा हाइब्रिड 2, मंगला, वैशाली, मैत्री, अविनाश-22, स्वर्ण वैभव एवं ऋषि।

टमाटर फसल की रोपाई तथा उत्पादन:
खेत की जुताई के बाद समतल करके 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद को समान रूप से खेत में बिखेरकर पुनः अच्छी जुताई कर लें। टमाटर की रोपाई करने से पहले घास-पात को पूर्णरूप से हटा दें। टमाटर उत्पादक, पौधों को लगाने से पहले, 30-50 दिनों तक अंकुरों को बीज की क्यारियों में रखते हैं। टमाटर की रोपाई के बाद किसान 3-6 सप्ताह के पौधे लगाना पसंद करते हैं। टमाटर के पौधे को 60-45 सेंमी. की दूरी लेते हुए रोपाई करें। 
प्रति हेक्टेयर उत्पादन विविधता और मौसम के अनुसार बहुत अधिक भिन्नता दिखाता है। औसतन, उत्पादन 20-25 टन प्रति हेक्टेयर तक की होती है। हाइब्रिड विविधताएँ तकरीबन 50-60 टन प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन कर सकती हैं।

टमाटर के रोग तथा प्रबंधन:

  1. पक्षेती झुलसा रोग - यह रोग कली खिलने के बाद दिखाई देता है। इस रोग से टमाटर की पत्तियाँ सड़ने लगती हैं, और सूख जाती हैं। रोगग्रस्त पौधों को जल्दी नष्ट करें तथा टमाटर की फसल हर सीजन में लगाते वक्त नर्सरी का स्थान बदलें।
  2. मोजेक विषाणु रोग - ठण्डा पानी पडने पर इस रोग की लगने की संभावना बढ़ जाती है। रोगग्रसित पौधे छोटे रह जाते हैं और पत्तियाँ सूखी और हल्के पीले रंग की हो जाती हैं। नर्सरी का स्थान हर सीजन में बदलें और फसल चक्र अपनाऐं। उच्चतम बीज अपने स्थान के लिये उपर्युक्त ही चुनें।
  3. फल छेदक रोग - गर्म मौसम के बाद हल्की बारिश के बाद यह कीट लगता है। फल छेदक यह विकासशील फलों पर प्रहार करता है। सरसों नीम की खली और गोबर के कंडे की जलाई राख साप्ताहिक छिड़काव से भी रोग लगने से बचा जा सकता है।
     

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