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गर्मी के मौसम में खेतों में नई फसल बोने का समय आ गया है। उड़द एक ऐसी दलहनी फसल है जिसकी मांग बाजारों में पूरे साल रहती है। कम समय में अधिक लाभ देने वाली फसल है। उडद की फसल 60 से 70 दिन में तैयार हो जाती है। इसके पोषक तत्वों के कारण बाजार में भी अच्छी मांग रहती है। उड़द की खेती गर्मी के मौसम में अच्छी पैदावार देती है, उड़द फसल के लिए गर्मी का मौसम सबसे उपयुक्त माना जाता है। इसकी बुआई अप्रैल के पहले सप्ताह में शुरू कर देनी चाहिए क्योंकि इसकी वृद्धि के लिए 30 से 40 डिग्री का तापमान उपयुक्त होता है। देश मे उड़द की खेती 3243 हजार हेक्टेयर मे की जा रही है। देश मे उड़द की औसत उपज 451.6 किग्रा./हेक्टेयर है। उड़द की फसल मार्च के पहले सप्ताह में और गर्मियों में जून-जुलाई के महीने में बोया जा सकता है। इसके लिए 25 से 30 डिग्री का तापमान उपयुक्त होता है। इसकी खेती के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है, उड़द की खेती लगभग 700 से 900 मिमी वर्षा सर्वोत्तम है। पौधों को कम से कम 10 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए। उड़द बीच का उपचार फफूंदनाशक से हम कर सकते हैं, फफूंदनाशक जैसे केप्टन या थायरम आदि का प्रयोग करना चाहिए। राइजोबियस कल्चर से इस फसल की उपज को 15% बढ़ा सकते हैं।
बाजार में कई प्रकार की उन्नत किस्म हमें मिलती है जिन्हे विभिन्न जलवायु के हिसाब से अधिक उपज के लिए पूरे भारत में उगाया जाता है, आइये जाने उड़द की प्रमुख किस्में: टी. 19, कृष्णा, पंत यु 19, यु.जी. 218, के यू- 309, जवाहर उड़द 2, आजाद उड़द- 1, एल बी जी- 20, ए डी टी- 4, ए डी टी- 5
उड़द की सिंचाई- उड़द की फसल में फूल एवं दाना भरने के समय खेत मे नमी न हो तो एक सिंचाई देना चाहिये।
पीला चित्तेरी रोग- यह रोग की प्रारम्भिक अवस्था में चित्तकवरे धब्बे के रूप में पत्तियों पर दिखाई देते हैं। जिससे पत्तियों के साथ-साथ पूरा पौधा भी पीला पड़ जाता है। यह रोग विषाणु द्वारा मृदा तथा बीज मे नहीं होता है।
पर्ण व्याकुंचन रोग या झुर्रीदार पत्ती रोग - यह विषाणु रोग है जो पौधे की तीसरी पत्ती पर दिखाई पड़ते हैं। पत्तियाँ सामान्य से अधिक वृद्धि तथा झुर्रियां आ जाती है और फसल पकने के समय पीला चित्तेरी रोग का संक्रमण हो जाता है।
मौजेक मौटल रोग- यह रोग कुर्बरता के नाम से जाना जाता है और इसका प्रकोप मूंग की अपेक्षा उर्द पर ज्यादा होता है। इससे पत्तियाँ सिकुड़ जाती हैं तथा फफोले युक्त हो जाती हैं।
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खाद एवं उर्वरक का उपयोग: ग्रीष्मकालीन खेती के लिए खेत तैयार करते समय उर्वरक में गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए। इसके लिए प्रति एकड़ डेढ़ से दो ट्रॉली गोबर की खाद डालें। जड़ों की वृद्धि के लिए गाय का गोबर बहुत ही महत्वपूर्ण उर्वरक है। रासायनिक उर्वरकों में 80-100 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट दिया जा सकता है, जिसमें सल्फर होता है। इसके अलावा इसमें कई पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। उड़द एक दलहनी फसल है जिसमें सल्फर की भी आवश्यकता होती है। इसके साथ ही 20 किलो पोटाश उर्वरक का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इन उर्वरकों को खेत की तैयारी के समय छिड़काव करें तथा रोटावेटर से खेत को समतल करके खेत में बुवाई करें।
उडद की फसल से उत्पादन तथा मूल्य: सही तरीके से की खेती करें तो उडद का उत्पादन 4 से 6 क्विंटल प्रति एकड़ होगा। एक बीघे में 2 से 3 या फिर 4-5 क्विंटल तक की उपज मिल सकती है। उडद की बाजारों में मूल्य 6000 से 7000 रुपये के आसपास आसानी से मिल जाएगी। ऐसे में किसान भाइयों को उड़द की खेती से काफी मुनाफा मिल सकता है।
उडद की उपयोगिता: उडद प्रोटीन का प्रमुख अंग होता है जिससे प्रोटीन की पूर्ति दालो से की जाती है। उड़द की दाल मे सबसे अधिक प्रोटीन होता है। उड़द की दाल का भोजन में महत्वपूर्ण स्थान है साथ ही इसमे कई प्रकार के विटामिन एवं खनिज लवण भी पाये जाते है।