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जल केवल मानव जाति के लिये ही नही बल्कि जीव-जन्तुओं और पेड़-पौधों के लिये भी आवश्यक है। पृथ्वी परह जल के बिना जीवन जीने की कल्पना नहीं की जा सकती है। सम्पूर्ण जीव जगत का आधार ही जल है। हमारे शरीर में अंदर चलने वाली समस्त जैवरासायनिक प्रक्रियाएं तो जल के अभाव में पूर्णरूप से रूक जाएंगी। यदि हम जल ग्रहण करना बंद कर दे तो क्या हमने और आापने कभी सोचा था कि पानी एक दिन बोतलों में बिकेगा। आज जल की कमी देशों और महाद्वीपों के दायरे को तोड़कर विश्वव्यापी समस्या बन गई हैं। भूजल एक बहुत महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। आज भारत सहित विश्व के अनेक देश जल संकट की समस्याओं से जूझ रहे हैं। इस समय भारत में विश्व की 17 प्रतिशत आबादी का निवासी है। 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है।
अन्तर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान का मानना है कि भविष्य में जल की कमी एक बड़ी समस्या उत्पन्न होगी। आज पूरा मानव समाज भूजल के गिरते स्तर की वजह से गंभीर संकट की चपेट में हैं। जल की कमी के कारण मानव पेड़ पौधों व जीव जन्तुओं का विकास और वृद्धि प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है। देश में अनुमानित 95 प्रतिशत ज्वार और बाजरा लगभग 90 प्रतिशत मोटे अनाजों की पैदावार वर्षा आधारित क्षेत्रों से ही आता है। इसके साथ 91 प्रतिशत दाल तथा 85 प्रतिशत तिलहनों की पैदावार भी बरानी क्षेत्रों में होती है। जीवन को स्वास्थ्य बनाने के लिये हम सभी को स्वच्छ जल की आवश्यक जरूरी है। कृषि के लिये सिंचाई एक मुख्य समस्या जल की है। देश में 45 प्रतिशत कृषि भूमि ही सिंचित है जो कि भूजल पर निर्भर है। हमारे देश की कुल 143 मिलियन हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि का लगभग 55 प्रतिशत वर्षा तथा बरानी खेती के अन्तर्गत आता है।
घटता हुआ भूजल स्तर एक सम्पर्ण जीव के लिये अत्यन्त चिंता का विषय है। पिछले कई दशकों से उद्योगों खेती-बाड़ी विकास कार्यां व अन्य उपयोगों में भूर्गीय जल पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है। इस कारण भमिगत जल के दोहन से भूजल स्तर निरन्तर तेजी से घटता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी वार्षिक वल्र्ड वाटर डेवलपमेंट में कहा है कि पानी के उपायो के तरीकों और प्रबंधन में कमियों के कारण वर्ष 2030 तक दुनिया को जल संकट का सामना करना पड सकता है। वर्तमान समय में बढ़ते शहरीकरण आधुनिकीकरण औद्योगिकीकरण कृषि मशीनीकरण से भूजल पर दबाव बढ़ता जा रहा है। दूसरी तरफ ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने से मिट्टी सतह से वाष्पन व पौधों मे वाष्पोत्सर्जन दर में वृद्धि होती है। भूमि में नमी की कमी होने से भूजल स्तर भी प्रभावित होता है। भूजल स्तर मे कमी का एक प्रमुख कारण कम वर्षा और बर्फबारी में लगातार आ रही गिरावट है। बर्षा का अधिकांश भाग इधर-उधर बहकर नष्ट हो जाता है।
भूमिगत जल का बहुत अधिक दोहन होने के कारण जलस्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है जिसके कारण कुँओं का पानी सूखना जलापूर्ति की समस्या सिंचाई की समस्या जल की विषाक्तता लवणीकरण और पम्पिंग सैट लगवाने की लागत बढ़ना आदि गंभर समस्यायें उत्पन्न हो रहीं हैं। आज के समय में भी देश के लगभग 6 करोड़ से अधिक लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है। आजादी के 77 साल बाद यदि इतनी आबादी में स्वच्छ पानी नहीं है तो यह चिंता का विषय है। जल स्तर में गिरावट के कारण भूमि के उपजाऊपन व फसलों की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फसलों में अत्यधिक सिंचाई से जल का अपव्यय ही नहीं बल्कि मिट्टी का स्वास्थ्य भी खराब होता है। किसान पृथ्वी पर घटते जल स्तर से परेशान हैं। भूमि पर जल स्तर कम होने से अनेक क्षेत्रों में हानिकारक तत्वों जैसे आर्सेनिक कैडमियम फ्लोराइड निकिल व क्रोमियम की सान्द्रता बढ़ती जा रही है।
विभिन्न उद्योगों व कृषि में अपशिष्ट जल का उपयोग: इजराइल जैसे छोटे देश में पानी का कुल 62 प्रतिशत संशोधित जल होता है। इस जल का उपयोग विकास कार्यों और औद्योगिक कार्यां में संशोधित जल का इस्तेमाल करना चाहिए। अखाद्य फसलों सजावटी पौधों की सिंचाई के लिये भी इस जल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इस अपशिष्ट जल को संशोधित कर विकास कार्यां व खेती में प्रयोग किया जा सकता है जिससे पानी का सदुपयोग हो सके। शहरों में दूषित पानी की उपलब्धता अधिक होती है ऐसे में सिंचाई के लिये संशोधित जल को पुनः उपयोग करना जरूरी है। भारत में 90 प्रतिशत पानी खेती के लिये प्रयोग किया जाता है जबकि इजराइल अपशिष्ट या खारे पानी को साफ करके खेती के कार्या में प्रयोग करता है।
प्रदूषित जल में तत्वों की मात्रा: प्रदूषित जल में पौधों के लिये पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है। इसमें नाइट्रोजन फासफोरस और पोटाष के साथ सूक्ष्म पोषक तत्व भरपूर मात्रा में भूजल या नहर के जल से ज्यादा पाई जाती है।
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भूजल का बढ़ता संक्रमण: वर्तमान समय में भूजल बहुत ज्यादा प्रदूषित हो रहा है। इसके प्रमुख कारकों जैसे- घरेलू व्यर्थ पदार्थ औद्योगिक अपशिष्ट रेडियोधर्मी पदार्थ पेट्रोलियम तत्व हानिकारक होते हैं। सीवेज में मौजूद हानिकारक जीवाणु विषाणु फफूंद साथ ही भारी धातुओं जैसे क्रोमियम लेड और मरकरी का भूजल की गुणवत्ता पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड रहा है। प्रदूषित पानी को पीने के कारण उत्पन्न अनेक प्रकार की बीमारियां फैलती हैं। सिंचाई प्रणाली और खेती में बढ़ते कृषि रसायनों के प्रयोग से भूजल की गुणवत्ता मिट्टी की उर्वराशक्ति एवं फसलों की पैदावार में कमी जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं।
भूजल संरक्षण के उपाय: आज के समय में पूरा देश स्वच्छ पानी पीने की समस्या से जूझ रहा है। इसके कुछ उपाय हैं जिनसे पानी को संरक्षित किया जा सकता है। इसके द्वारा तालाबों में बरसात के पानी को संरक्षित किया सकता है। कम पानी वाले क्षेत्रों में ड्रिप सिंचाई विधि अपनाई जानी चाहिए। इसके द्वारा सब्जी फल और फूलों की पैदावार अधिक तथा गुणवत्ता अच्छी होती है। ऐसे पौधे उगाए जाएं जिसमें रेगिस्तानी पौधों के जीन्स हों और कम से कम पानी की आवश्यक हो। आधुनिक कृषि यन्त्र लेजर लेवलर का उपयोग करके खेत की सिंचाई करें जिससे पानी की बचत होती है।