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Chhath Pooja: कब है छठ पूजा, जानें नहाय, खाय, खरना से लेकर व्रत और पूजा विधि

छठ पूजा
छठ पूजा

पंचाग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि और दीवाली के बाद षष्ठी तिथि से छठ पूजा का पर्व प्रारंभ हो जाता है। यह पर्व महिलाओं के लिये बहुत खास होता है, साथ ही यह पूजा पूरे 4 दिनों तक चलता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिये सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा करती हैं। छठी मैया का व्रत कार्तिक मास में शुक्ल की षष्ठ तिथि को मुख्य होता है। व्रत के दौरान महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। इसलिए छठ माता का व्रत सबसे कठिन माना जाता है। 

छठ पूजा कब और कहां मनाया जाता है?

पंचाग के अनुसार छठ पूजा 07 नवंबर गुरूवार 2024 षष्ठी तिथि को सुबह करीब 12 बजकर 41 मिनट से शुरू होगी और 08 नवंबर को सुबह 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी। छठ पूजा का पर्व बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है।

छठ पूजा की मान्यता

छठ मैया ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं और सूर्यदेव की बहन हैं। छठ मैया को संतान की रक्षा करने वाली और संतान सुख देने वाली देवी के रूप में शास्त्रों में बताया गया है जबकि सूर्यदेव अन्न और संपन्नता के देवता है। इसलिए जब रवि और खरीफ की फसल कटकर आ जाती है तो छठ का पर्व सूर्य देव का आभार प्रकट करने के लिए कार्तिक माह में किया जाता है।

छठ पूजा के पहले दिन सूर्योदय 06:39 मिनट होगा और 05:41 मिनट पर सूर्यास्त होगा। वहीं छठ पूजा के दूसरे दिन को लोहंडा, खरना कहा जाता है, इस दिन पंचमी है और माताएं पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत के तीसरे दिन नदी में जाकर सूर्यदेव को अघ्र्य दिया जाता है। इस दिन सूर्यास्त शाम 05:29 मिनट पर है। चौथे दिन उगते सूरज को अघ्र्य दिया जाता है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:35 मिनट पर है।

छठ पूजा का खास महत्व

छठ पर्व मुख्य रूप से दीवाली के बाद षष्ठी तिथि को किया जाता है। इसका आरंभ नहाय खाय से हो जाता है यानी छठ पर्व शुरुआत में पहले दिन व्रती नदियों में स्नान करके भात,कद्दू की सब्जी और सरसों का साग एक समय खाती है। दूसरे दिन खरना किया जाता है जिसमें शाम के समय व्रती गुड़ की खीर बनाकर छठ मैय्या को भोग लगाते हैं और पूरा परिवार इस प्रसाद को खाता है। तीसरे दिन छठ का पर्व मनाया जाता है जिसमें अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन सूर्यदेव के उगते समय अघ्र्य देने साथ व्रत का पारण किया जाता है और इसी दिन व्रत का समापन भी हो जाता है।

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