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दालों में आत्मनिर्भरता की चुनौतियाँ: भारत में उत्पादन, आयात और नीतिगत सुधारों की जरूरत

दाल उत्पादन और आयात
दाल उत्पादन और आयात

दालें भारतीय कृषि और आहार की आधारशिला हैं, जो देश की खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी आवश्यकताओं में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। पिछले कुछ वर्षों में, भारत में दालों के उत्पादन और प्रसंस्करण के रुझानों में काफी बदलाव आया है। भारत दुनिया में सबसे ज्यादा दाल उगाने वाला देश है और इसका सबसे बड़ा उत्पादक भी है, लेकिन इसके बावजूद देश को हर साल 32 हजार करोड़ रुपये की दाल आयात करनी पड़ती है। आइए जाने दालों की स्थिति

भारत में दालों की स्थिति:

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भारत दुनिया में सबसे ज्यादा दाल उगाने वाला देश है और इसका कुल दाल उत्पादन वैश्विक उत्पादन का 28% है। साथ ही, भारत दाल उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा भूमि यानी 38% वैश्विक रकबे का उपयोग करता है। 

FAO के 2022 के आंकड़ों के मुताबिक:

दालों का वैश्विक रकबा: 959.68 लाख हेक्टेयर, वैश्विक उत्पादन: 973.92 लाख टन, वैश्विक औसत उत्पादकता: 1015 किलो/हेक्टेयर रहा। वहीं भारत में दालों की स्थिति-दालों का कुल रकबा: 361.1 लाख हेक्टेयर, कुल उत्पादन: 276.69 लाख टन और उत्पादकता दर: मात्र 766 किलो/हेक्टेयर, जो विश्व में सबसे कम में से एक है।

कम उत्पादकता की वजह से आयात की जरूरत: भारत में उत्पादन क्षमता तो अधिक है, लेकिन उत्पादकता बेहद कम है, जिसका सीधा असर घरेलू मांग पर पड़ता है। नतीजतन, देश को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर दालों का आयात करना पड़ता है।

वर्ष 2023-24 में भारत का दाल आयात: 31,071 करोड़ रुपये यानी पिछले वर्ष की तुलना में 97% अधिक, 2022-23 में आयात मात्र 15,780 करोड़ रुपये था। 2016-17 में भारत का दाल आयात 28,300 करोड़ रुपये के उच्चतम स्तर पर था, जब 6.6 मिलियन टन दाल आयात की गई थी।

भारत की दाल नीति में सुधार की जरूरत:

  1. किसानों को उच्च उत्पादकता वाले बीज उपलब्ध कराना।
  2. आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग बढ़ाना और फसल चक्र अपनाना।
  3. जल प्रबंधन और सिंचाई की बेहतर व्यवस्था करना।
  4. सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और खरीद नीति को प्रभावी बनाना।
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